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________________ २९२ सरस्वती धर्म और संस्कृति छोड़ने का ? यह 'स्व' क्या है और भाई जी की राय में हिन्दूत्व क्या है, यह ठीक ठीक मालूम हो तो उन पर विचार किया जा सकता है । हिन्दुओं में जाति-भेद बहुत जड़ पकड़े हुए है । इसको भाई जी हिन्दूत्व में रखेंगे ? जहाँ तक मैं जानता हूँ वे इसके विरुद्ध हैं और जात-पाँत-तोड़कमंडल के सदस्य हैं । और हमारे बहुत रवाज हैंविधवाओं के संबंधी, विरासत के बारे में, विवाह के, मरने के, पूजा इत्यादि के, खाने के, छूत छात के, कपड़े। के, इनमें से क्या क्या बातें हिन्दूत्व में रखनी चाहिए ? यह कहा जा सकता है कि ज्यादातर ये बातें ऊपरी हैं और मूल बातें पकड़ने के लिए हमें वेदों को लेना चाहिए या हमारे दर्शन - शास्त्र को । बहुत हिन्दू यह नहीं मानेंगे कि हम इन 'ऊपरी' बातों को अहमियत न दें। वे उनको वेदों से अधिक आवश्यक समझते हैं । और अगर हिन्दुओं के आगे बढ़िए और बौद्ध, सिक्ख, जैनों को लीजिए (जिनको मुझे खुशी है कि हिन्दू महासभा ने अपनाने का यत्न किया है) तब और भी पेचीदगियाँ बढ़ती हैं । बौद्ध दर्शन शास्त्रों में और हिन्दू-दर्शन शास्त्रों में बहुत फर्क है । वे वेदों को नहीं मानते । वे तो ईश्वर तक को नहीं मानते। ऐसी हालत में अगर मेरे ऐसे कम जाननेवाले लोग गड़बड़ा जावें तो क्या आश्चर्य है ? इसलिए यह आवश्यक है कि भाई परमानन्द जी और हिन्दू महासभा इस बात को बिलकुल साफ़ कर दे कि किस 'स्व' के लिए वे कोशिश करते हैं, किस हिन्दूत्व को वे इस हमारे देश में क़ायम रक्खा चाहते हैं । और यह भी साफ बताया जावे कि उनकी राय में कांग्रेस कहाँ कहाँ 'स्व' को छोड़ रही है। विचार करनेवाले लोग गोल शब्दों की उलझन से निकल कर हर बात को साफ कहने और लिखने की कोशिश करते हैं । तब ही उस पर विचार हो सकता है, नहीं तो केवल जोश बढ़ाने के शब्द वे हो जाते हैं। मेरा खयाल था—संभव है कि यह ग़लत हो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३६ कि जिस 'स्व' में हिन्दू महासभा को खास दिलचस्पी है वह सरकारी नौकरी चाकरी और कौंसिलों वग़ैरह की मेम्बरी से संबंध रखता है – कितने तहसीलदार, डिप्टी कलक्टर और पुलिस के अफसर हिन्दू हों । यह भी मैंने देखा कि हिन्दू महासभा को राजाओं, तल्लुकदारों और बड़े जमींदारों और साहूकारों से बहुत मोहब्बत है और उसे उनके हक़क्क़ की रक्षा की फिक्र रहती है । क़र्ज़ -संबंधी क़ानूनों का उन्होंने विरोध किया इस बुनियाद पर कि वे साहूकार को हानि पहुँचाते हैं चाहे वे किसान और छोटे जमींदारों को फायदा क्यों न करें। क्या ये सब बातें हिन्दूत्व में मिली हुई हैं और साहूकार का जबर्दस्त सूद लेना भी हमारे उस 'स्व' का एक हिस्सा है जिसकी हमें रक्षा करनी है ? एक और विचारणीय बात है । इतिहास-लेखकों का यह खयाल है कि भारत में मुस्लिम राज्य स्थापित होने पर हिन्दू सभ्यता और संस्कृति का केन्द्र दक्षिणभारत की तरफ चला गया। वहाँ मुसलमानों की पहुँच कम थी । आज कल भी दक्षिण में पुराना हिन्दू-वर्णाश्रम धर्म उत्तर-भारत से अधिक है और भारत भर में यह हिन्दूत्व कदाचित् पंजाब में सबसे कम हो। इसकी वजह साफ़ है । पंजाब और सिन्ध का इस्लामी राजाओं और हुकूमत से हमारे देश में सबसे अधिक संबंध रहा। विचारणीय बात तो यह है कि इस समय इसी पंजाब में हिन्दू महासभा की शक्ति ज्यादा है और दक्षिण में तो उसकी पहुँच बहुत कम है । मुझे सभ्यता और संस्कृति के इतिहास में बहुत दिलचस्पी रही है और असल में तो वही इतिहास हैं, बाक़ी राजाओं का आना और जाना और लड़ना है । जब कभी सभ्यता या संस्कृति का प्रश्न उठता है तब मैं उधर खिंचता हूँ और कुछ सीखने और समझने की कोशिश करता हूँ । सर मोहम्मद इक़बाल अक्सर इस्लामी संस्कृति का जिक्र करते हैं। मुझे यह बात गोल मालूम हुई, इसलिए मैंने उनसे इसको www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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