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________________ सरस्वतो: [ भाग ३६ थे। वास्तव में आपके न रह जाने से हिन्दू-जाति का एक १६२४ में उसके उठा देने की घोषणा की थी और यह बड़ा भारी नेता उठ गया है । नियम बना दिया था कि नैपाल से गुलामी की प्रथा अमुक - स्वामी दयानन्द का जन्म वंग-देश में एक कुलीन समय के भीतर एकदम उठ जाय । यही नहीं, उन्होंने बंगाती ब्राह्मण-कुल में हुआ था। आपने कलकत्ता- इसके लिए पाँच लाख पौंड अलग कर दिये थे कि जो यूनिवर्सिटी से बी० ए० की डिगरी भी प्राप्त की थी। लोग अपने गुलामों को गुलामी से मुक्त करना चाहें छात्रावस्था से ही आपमें विराग का भाव जाग्रत हुअा उनको इस धन से मुत्राविज़ा दिया जाय । उनकी था। समय आने पर आप सनातनधर्म की सेवा करने के घोषणा का यह फल निकला कि ४,६५१ ग़लाम तुरन्त विचार से महामण्डल के सर्वप्रधान स्वामी ज्ञानानन्द के मुक्त कर दिये गये और उनके लिए महाराज को मुआविज़ा शिष्य हो गये। उनके तत्त्वावधान में रहकर आपने हिन्दू- भी नहीं देना पड़ा। उस समय सारे देश में ६० हज़ार शास्त्रों का गम्भीर अध्ययन किया और शीघ्र ही अपनी गुलाम और १५ हज़ार गुलाम रखनेवाले थे। उपर्युक्त प्रतिभा के बल से सनातनधर्म के वक्ताओं तथा नेताओं राजाज्ञा का लोगों पर अच्छा प्रभाव पड़ा, जिससे गुलामों की अग्र पंक्ति में पहुँच गये। आप गत ३०-३२ वर्ष से को स्वाधीन नागरिक बनाने में सरकार को उस रकम में अपने भाषणों के द्वारा समग्र उत्तरी भारत में भ्रमण अब तक कुल २,७५,२५० पौंड ही खर्च करने पड़े हैं। कर धर्म का प्रचार करते और यहाँ के सामाजिक तथा अनेक लोगों ने गुलामों को बिना मुनाविज़ा लिये ही धार्मिक आन्दोलनों में सदा प्रमुख भाग लेते रहे हैं। गुलामी से मुक्त कर दिया है । फलतः अाज नेपाल-राज्य कानपुर में सनातनधर्म-कालेज की स्थापना आपके ही में एक भी गुलाम नहीं है। यह बात वहाँ की गुलामप्रयत्नों से हुई थी। श्राप हिन्दी के भी बड़े प्रेमी थे। विरोधी सभा के वार्षिक जलसे में स्पष्ट रूप से कही गई है। आपने अपने प्रायः सभी महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हिन्दी में ही लिखे हैं, जिनसे हिन्दी के धार्मिक साहित्य के एक बड़े सोने की निकासी अभाव की सुन्दर ढंग से पूर्ति हुई है। ऐसे तपस्वी हिन्दी- इंग्लेंड से 'गोल्ड स्टैंडर्ड जब से उठ गया है तब प्रेमी विद्वान् साधु के निधन से देश की वास्तव में बहुत से २,३७,२६,६३,१२२) का सोना भारत से बाहर बड़ी हानि हुई है। जा चुका है। इतने मूल्य का सोना निकल जाने का यह अर्थ हुअा कि भारतवर्ष इतने धन से खाली हो नेपाल में गलार्मा का अन्त गया। सोने की इस बढ़ती हुई निकासी को रोकने के संसार में हिन्दों का एक-मात्र स्वाधीन राज्य नेपाल लिए असेम्बली के कांग्रेस-सदस्य श्री ए. ऐयंगर ने एक है। यहाँ का शासन अाज भी वहाँ के स्वाधीन हिन्दू- प्रस्ताव पेश किया था। मगर लार्ड विलिंगडन ने उक्त शासक के ही हाथों में है, और वहाँ अाज भी हिन्दू. प्रस्ताव को असेम्बली में पेश होने के लिए अपनी शास्त्रों के अनुसार ही शासन आदि का सारा कार्य होता स्वीकृति नहीं दी। अतएव भारत से सेना के बाहर है। यह प्रसन्नता की बात है कि वहाँ के शासक बीसवीं जाने पर रोक न लग सकी। वास्तव में इस आर्थिक सदी के महत्त्व को जानते हैं और आधुनिक युग का संकट के समय में देश से सोने को बाहर जाने देना देश उन्नतिशील बातों को धीरे धीरे ग्रहण करते जा रहे हैं। में गरीबी बलाना है। उदाहरण के लिए नैपाल की गुलामी-प्रथा को लीजिए। कृष्णमोहन स्वर्गीय तीन सरकार महाराज चन्द्र शम्शेरजंग ने सन् Printed and published by K. Mittra, at The Indian Press, Ltd., Allahabad. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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