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________________ संख्या ३] सम्पादकीय नोट २८५ भी देशभक्त हैं और स्वाधीनता की लड़ाई लड़ने में किसी करते हैं और अपनी अधिक संख्या के कारण उनका वहाँ से पीछे नहीं हैं। इन दो दलों के सिवा तीन दल और पूरा दबदबा भी है । इस योजना की उपयुक्तता के सम्बन्ध हैं। और ये पाँचों दल एक प्रकार से हिन्दुओं के ही दल में तरह तरह के प्रमाण दिये जा रहे हैं और यह भी कहा हैं और इन पाँचों में पाँच के स्थान में दस मत हैं। ऐसी जाता है कि इसके अनुसार पाकस्तान का निर्माण हो दशा में अगले चुनाव में हिन्दू-सदस्य कई दलों में विभक्त जाने पर शेष भारत के साम्प्रदायिक दंगों में भी बहुत होकर कौंसिलों में जायँगे, पर मुसलमानों का अपना एक कुछ कमी आ जायगी। परन्तु इस सम्बन्ध में सबसे मज़े ठोस ही दल रहेगा । अपनी बहुसंख्या के कारण यद्यपि हिन्दू की बात तो यह कही जाती है कि उन प्रान्तों के मुसलमान कई प्रान्तों की कौंसिलों में बहुसंख्या में रहेंगे, तथापि भारत के शेष भाग के निवासियों से अपने को भिन्न जाति आपसी फूट के कारण वे अपनी बहुसंख्या के कारण कहीं का समझते हैं। इसके सिवा एक यह भी कि बंगाल के भी उपयुक्त लाभ नहीं उठा सकेंगे। हाँ, मुसलमान अपने मुसलमानों की इस योजना में उपेक्षा की गई है, यद्यपि दृढ़ संगठन के कारण कौंसिलों से पूरा पूरा लाभ उठा पाकस्तान के मुसलमानों से वहाँ के मुसलमान कम संख्या लेने में समर्थ होंगे। और मज़ा यह है कि यह सारी में नहीं हैं । अवस्था सबको विदित है। परन्तु यहाँ के राष्ट्रीयतावादियों हिन्दू बेचारे साम्प्रदायिक बँटवारे से ही पीड़ित थे, अब को राजनीतिज्ञता का रोग हो गया है, अतएव वे यह यह दूसरी बला उनके सिर पाना चाहती है और उनके नहीं सुनना चाहते कि उनके किसी काम से उनका काई देश का एक श्रेष्ठतम अंश जान ' कुछ दिनों में अराष्ट्रीयतावादी बतावे । ऐसी दशा में आनेवाले नये उनके देश से निकल जायगा । शासन-विधान से देश को क्या लाभ होगा, यह तो नहीं कहा जा सकता, पर इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि पत्रकार-सम्मेलन उसके फल-स्वरूप इस ग़रीब देश का शासन-व्यय कई अखिल भारतीय पत्रकार सम्मेलन का तीसरा एक करोड़ रुपया बढ़ अवश्य जायगा । बड़ा अधिवेशन पिछले दिनों कलकत्ते में धूमधाम से हो गया। अब इस संस्था का स्थायी रूप से संघटन हो । पाकस्तान की योजना गया है और जान पड़ता है, इसके प्रति-वर्ष वार्षिक । मुसलमानों की पाकस्तान की योजना अब अखबारों अधिवेशन हुश्रा करेंगे। कलकत्ते के अधिवेशन के. की टीका-टिप्पणी की ही बात नहीं रह गई। वह धीरे धीरे सभापति 'लीडर' के प्रख्यात सम्पादक श्री सी० वाई. वास्तविकता का रूप भी धारण करने लगी है । इस योजना चिन्तामणि बनाये गये थे। इस सभा का आयोजन का मतलब यह है कि कश्मीर, पञ्जाब, पश्चिमोत्तर-सीमा- अमृतबाज़ार-पत्रिका के प्रसिद्ध सम्पादक श्री तुषारप्रान्त, सिन्ध और बलूचिस्तान को मिलाकर मुसलमानों कान्ति घोष ने किया था और वही उसके स्वागताध्यक्ष का पाकस्तान नाम का एक अलग प्रान्त बना दिया जाय। हए थे। भारतीय पत्रों को कानूनी अडंगों के कारण दूसरे शब्दों में इसका मतलब यह है कि भारत के रकबे कैसी असुविधायें झेलनी पड़ती हैं तथा प्रेस-कानून की का छठा भाग, उसकी आबादी का दसवाँ भाग, और दो कठोरता के कारण भारत के पत्रों की उन्नति के मार्ग में तिहाई उसका सैन्य-बल मुसलमानों के लिए पाकस्तान के कितनी बाधायें आड़े आ गई हैं, इन सब बातों की ओर नाम से अलग कर दिया जाय । उक्त सभा ने अपने महत्त्वपूर्ण प्रस्तावों के द्वारा सरकार इसमें सन्देह नहीं कि भारत में जितने मुसलमान का ध्यान आकृष्ट किया है। सभा के इस अधिवेशन में बसते हैं उनका एक तिहाई हिस्सा उपर्युक्त प्रान्तों में प्रायः सभी अँगरेज़ी पत्रों के सम्पादक या उनके प्रतिनिधि बसता है। उन प्रान्तों में ७० फ़ी सदी मुसलमान निवास उपस्थित हुए थे तथा उसकी कार्यवाही में समुचित भाग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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