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________________ तनदा अबीसीनिया VITAEMIIAANI टान दिनकोवा लेखक, सो नि खोटश सोमाली मबाबा) १ M या श्रीयुत दीनदयालु शास्त्री इत्यालियन ब्रिटिश ईस्टी अफ्रीका । पाठक अबीसीनिया के बारे में बहुत कुछ जानना चाहेंगे। अफ्रीका में कालों का यही देश है जो हजारों वर्षों से स्वाधीन चला आ रहा है। इस लेख में विद्वान् लेखक ने अबीसीनिया के पूर्व इतिहास और उसकी वर्तमान राजनैतिक स्थिति का सुन्दर परिचय दिया है । लाज ध सभ्य अफ्रीका के पूर्व में आबोहवा बहुत अच्छी है। राजधानी अदिसअबाबा अदन की खाड़ी के उस छोटा-सा शहर है और एक पहाड़ी मैदान में पार अबीसीनिया नाम का बसा है । - एक पहाड़ी तथा हरा-भरा १९ वीं सदी में योरप के कई दुर्धर्ष राष्ट्रों की देश है। इसका प्राचीन नजर अफ्रीका पर पड़ी। धोरे धीरे ब्रिटेन, फ्रांस, A नाम स्थोपिया है। पिछले जर्मनी, पुर्तगाल, बेल्जियम व इटली ने इस महाद्वीप को ' हजारों वर्ष से यह देश हड़प लिया। अबीसीनिया के पड़ोस के सोमालीलेंड स्वतंत्र चला आ रहा है। यहाँ के निवासी वीर, को फ्रांस, ब्रिटेन व इटली ने परस्पर बाँट लिया। उत्तर लड़ाके तथा मेहनती हैं। अपनी आजादी का उन्हें के एरिट्रिया प्रदेश को भी इटली ने अपने दखल में बड़ा नाज़ है। ज्यादा लोग ईसाई-मत को मानते हैं कर लिया। अबीसीनिया के समुद्र-द्वार मसोवा पर और धार्मिक विचारों में कट्टर हैं। देश का क्षेत्रफल इटली का झंडा फहराने लगा। एरिट्रिया व सोमालीसाढ़े तीन लाख वर्गमील है और जन-संख्या सवा लेंड दोनों ही सूखे, रेतीले तथा ऊजड़ प्रान्त हैं। इनको करोड़ से अधिक । देश के मध्य में ऊँचे ऊँचे पहाड़ों पाकर इटली के प्रधान मन्त्री क्रिस्पी की गृध्रदृष्टि की श्रेणी है। इन पहाड़ों के चारों ओर शुष्क मैदान अबीसीनिया पर पड़ी। क्रिस्पी ने अबीसीनिया को हैं। अतबारा, नील (ब्ल्यूनाइल), जूबा तथा शेबाली लिखा कि वह विदेश-सम्बन्धी बातों में इटली की .नाम की नदियाँ इन पहाड़े से निकल कर देश को सलाह से काम किया करे । अबीसीनिया के मनस्वी हरा-भरा रखती हैं। नील नदी का निकास ताना नगूसानगास्त सम्राट को यह स्वीकार न हुआ। सन् (Tsana) नाम की झील से है, जो देश के पश्चिम में १८९६ में इटली की प्रचण्ड सुसज्जित सेना एरिट्रिया पहाड़ों में अवस्थित है। नील नदी का प्रवाह से अबीसीनिया की ओर बढ़ी। सम्राट् मेनेलक ने उत्तर में सूडान और मिस्र को जरखेज़ बनाता है। अशिक्षित लेकिन बहादुर फौज लेकर अडोवा के दुर्गम पहाड़ी मुल्क होने के कारण देश के मध्य-भाग की निकट इटली की सेना से लोहा लिया। पहाड़ी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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