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________________ Hal Palla Heal BHARPAN -re ... श्रीयुत उपेन्द्रनाथ, । हरिकुमार मेरे मित्रों लान में से थे। उनकी गणना पञ्जाब के प्रसिद्ध दंदानसाज़ों में होती थी। दाँतों के उपचार में जो निपुणता उन्हें प्राप्त थी वह उनके - किसी समकालीन को न होगी। वे बी० एस-सी० की परीक्षा पास करने के बाद कलकत्ते चले गये थे और जब वहाँ से दंदानसाज़ी की शिक्षा प्राप्त करके लौटे तब एक कामिल डेंटल सर्जन थे । लाहौर में निस्बत-रोड पर उनकी सर्जरी थी। पञ्जाब के दूरस्थ प्रदेशों से रोगी वहाँ आते और स्वस्थ होकर चले जाते। कलकत्ता और कराची के और भी कई डिग्रीहोल्डर लाहौर में थे, किन्तु उनकी वही गति थी जो सूर्य के सामने दीपक की होती है । एक की ख्याति समस्त प्रान्त में फैली हुई थी, दूसरे को उनके बाज़ारों तक में भी मुश्किल से काई जानता था। मैं उन डाक्टरों की बात नहीं करता जो उनसे पहले प्रसिद्ध थे। मैं तो उनके सम्बन्ध में लिखता हूँ जिन्होंने उनके साथ काम प्रारम्भ किया था और उन डाक्टरों में हरिकुमार चाँद बनकर ऐसे चमक उठे थे कि दूसरों की युति मन्द पड़ गई । __ कलकत्ता से आने के बाद अल्प काल में ही यह सब कुछ हो गया। उनके साथी मुँह देखते रह गये । वे एक एक दाँत के दस दस रुपये ले लेते तो भी लोगों का ताँता बँधा रहता, और वहाँ एक एक रुपया पर भी कोई न फटकता था, बैठे सारा दिन मक्खियाँ मारा करते । सत्य बात तो यह थी कि डाक्टर हरिकुमार का चातुर्य हाथों की अपेक्षा उनकी ज़बान में अधिक था। यदि किसी का काम बिगड़ जाता, तो ऐसी बातों से उसका मन पूरा कर देते कि उपेक्षा करने के बदले उनकी सहृदयता की दाद देता हुअा वापस जाता। एक बार जो उनसे काम बनवाता, उनका जीवित विज्ञापन बन जाता, उनकी प्रशंसा करता न थकता । प्राणनाथ डाक्टर साहब के सहकारी का नाम था। स्वामी और सेवक का नाता होने पर भी दोनों में प्रगाढ़ प्रेम था। दोनों बचपन में साथ साथ खेले थे, स्कूल और कालेज में साथ साथ पढ़े थे। दोनों इकट्टा खाना खाते, एक मनोरञ्जक कहानी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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