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सरस्वती
[भाग ३६
मनुष्य के शरीर की बोटियाँ हो सकती हैं। ये हैं वह रेडियोग्राफ कहलाता है और वह भी बोटियाँ क्रम से रक्खी हैं। इन्हें आप अलग करके इस हाल में आपको देखने को मिलेगा। इस भी देख सकते हैं। सबको मिला दें तो पूरा शरीर रेडियोग्राफ के द्वारा मनुष्य के शरीर का जो फोटो बन जायगा।
लिया जाता है उससे साफ़ साफ़ मालूम हो जाता . मनुष्य मनुष्य में भेद क्यों है ? बटन दाबने से है कि शरीर के भीतर कहाँ गोली लगी है, फोड़ा है यहाँ प्रकाश शरीर के अन्दर की उन गिलटियों और या हड्डी टूटी है। रहस्यमय रसायनों को दिखाएगा जो हमारे शारी- सम्पूर्ण जीवन एक नन्हें जीवाणु से बना है, जो रिक भाग्यों का निर्माण करते हैं और उन्हें मजबूती क्षण क्षण पर द्विगुणित होता रहता है। ये जीवाणु से पकड़े रहते हैं।
मनुष्य के शरीर में तीन परतों में बसे हुए हैं। एक .. हम बोलते कैसे हैं ? यह जानना हो तो एक माडल में ये जीवाणु और इनकी उपजातियाँ भी
और बटन दाबिए। एक निर्जीव मूर्ति के होंठ, दिखाई गई हैं और यह भी बताया गया है कि जिह्वा, जबड़ा सब सजीव हो उठेंगे और आपको किस प्रकार के जीवाणुओं से मनुष्य-शरीर का बताएँगे की किस प्रकार कंठ में आवाज़ की सृष्टि कौन-सा अङ्ग बना है। होती है।
___इस प्रकार अमरीका में यह अद्भुत म्यूजियम . इसी प्रकार इस 'हाल आफ मैन' में शरीर- वहाँ के निवासियों को शरीर-रचना की शिक्षा दे शास्त्र-सम्बन्धी सम्पूर्ण ज्ञान संचित किया गया है। रहा है। हमारे देश में ऐसे म्यूजियम कब स्थापित यह न समझिए कि ये माडल और मूर्तियाँ कल्पना के होंगे, यह अभी कौन कहे। अभी तो यहाँ शिक्षासहारे बनी हैं। एक्स रे, रेडियम, और फोटोग्राफी- सम्बन्धी एक भी संग्रहालय ऐसा नहीं है जो जनतीनों की सहायता से जीवित मनुष्यों के शरीर के साधारण में किसी खास विषय के ज्ञान की कुछ
आर-पार का फोटो लेकर ये सब निर्मित हुई भी वृद्धि करता। हैं। जिस यंत्र से इस प्रकार के फोटो लिये जाते
('पापुलर सायंस' से)
विभ्रम
किस चिर अतीत का मधुर गान-आया बनकर सुस्मृति वसन्त, किसकी करुणा का नव विहाग-भर गया व्यथा का स्वर अनन्त ।। किस हृदय क्षितिज से गल गल कर अनगिन हिमकण पल पल भरते, किस नेत्र कंज के विमल कोष को रजत ओस से हैं भरते ।।
किसके वियोग की मूक हूक भ्रमरावलि-सी आ मँडराती, जो हृदय सुमन का मधु पराग नयनों के द्वार लुटा जाती। पुलकित 'रसाल पल्लवित प्रेम आशाओं से मृदु खेल खेल,
कल्पना-कुसुम का कर विकास, भर जावे जग का सुख सकेल । दारुण वियोग की विषम पीर-मलयज समीर-सी झूम झूम, पंकिल निर्भर-सी आँखों को मुग्धा-सी जाती चूम चूम ।। क्या है यह ? स्वप्निल मधुप्रभात अथवा भूली-सी विषम-पूर्ति, विच्छेद भरी श्यामा निशि में जो आती है बन मिलन-मूर्ति ।।
लेखिका श्रीमती रामकुमारी
चौहान
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