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________________ .. संख्या ३] पग-ध्वनि २५७ . वह पग-ध्वनि मेरी पहचानी ! बढ़ता जाता घुघरू का रव ! क्या यह भी हो सकता संभव ? यह जीवन का अनुभव अभिनव ! पदचाप शीघ्र, पग-राग तीव्र, स्वागत को उठ रे कवि मानी ! वह पग-ध्वनि मेरी पहचानी ! ध्वनि पास चली मेरे श्राती! सब अंग शिथिल पुलकित छाती ! लो गिरती पलकें मदमाती ! पग को परिरंभण करने की, पर इन भुज-पाशों ने ठानी। वह पग-ध्वनि मेरी पहचानी ! रव गूंजा भू पर, अंबर में, सर में सरिता में, सागर में, प्रत्येक श्वास में, प्रति स्वर में; किस किस का आश्रय ले फैलेमेरे हाथों की हैरानी। वह पग-ध्वनि मेरी पहचानी! ये ढूँढ़ रहे ध्वनि का उद्गम, मंजीर मुखरयुत पद निर्मम, है ठौर सभी जिनकी ध्वनि सम, इनको पाने का यत्न वृथा, श्रम करना केवल नादानी। यह पग-ध्वनि मेरी पहचानी ! ये कर नभ-जल-थल में भटके, आकर मेरे उर पर अटके, जो पग-द्वय थे अंदर घट के, थे ढूँढ़ रहे उनको बाहर, ये युग कर मेरे अज्ञानी । वह पग-ध्वनि मेरी पहचानी ! उर के ही मधुर अभाव चरण बन करते स्मृति-पट पर नर्तन, मुखरित होता रहता बन-बन, मैं ही इन चरणों में नूपुर, नूपुर-ध्वनि मेरी ही वाणी ! इटली और अबीसीनिया (रिव्यू श्राफ रिव्यूज़ से) MO MumO htam GURU D ILK Dimany Imanen DAD DuuuuN CHUNJ Umins Dmmm Drma Dhun Dural huuN Unau Umun D mA Dhum Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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