SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संख्या ३] जापान में २३९ रास्ते में कई जगह ट्रेन खड़ी होती गई। हमें दूसरे प्याले रक्खे गये। काफ़ी अर्ध दंडवत् (जापानी नौकरादिन इसी रास्ते दिन में ही लौटना था, इसलिए मार्ग के नियों का प्रणाम करीब करीब अर्ध दंडवत् होता है। दृश्य को देखने की कोई चिन्ता न थी। स्टेशनों के नाम-- अक्सर वह बैठकर ज़मीन पर दोनों हाथों और सिर चीनी, काना और रोमन तीनों अक्षरों में लिखे थे। को रख कर किया जाता है) के साथ प्यालों में चाय काना अक्षर उच्चारण के अनुसार हैं, चीनी की भाँति या डाली जाती थी। एक तश्तरी में चीनी की कुछ रंगहमारे हिन्दी के अङ्कों की तरह अर्थद्योतक नहीं। रोमन बिरंगी मिठाई भी रखी गई। हमारे साथी चा-नो-यू को अक्षरों से स्टेशन का नाम हमें आसानी से मालूम हो बीमारी का काढ़ा समझते थे । उनमें मेयोची. महाशय के जाता था। अतिरिक्त हमीं ऐसे थे जो प्रसन्नता से तथा एक-दो प्रशंसा ____टीक समय पर गाड़ी बेप्पू पहुँची। हम लोगों ने के शब्दों के साथ जापानी चाय पीते थे। वह हल्का-सा मोजी से ही एक योकन को टेलीफ़ोन करवा दिया था। चाय का पानी उबाला पानी था, उसमें न दूध, न चीनी योकन जापानी ढंग के होटल को कहते हैं, जो जापान और न नमक ही था। हमारे मनसाराम में सभी जगह बहुतायत से मिलते हैं। योरपीय ढंग के बाग़ी बनना चाहते थे, किन्तु हम तो उनके लड़कपन को होटल सिर्फ बड़े बड़े शहरों में ही मिलते हैं, और उनका अच्छी तरह से जानते हैं। दो-चार मीठे शब्द "ठहरो खर्च भी काफ़ी अधिक पड़ता है। तिब्बत में कन्सू के और प्रतीक्षा करो" कह देने पर मान जाते हैं। और पीछे चीनी होटलों के बारे में सुना था, कैसे पथिक के गाँव में जब उन चीज़ों का हफ़्तों का अभ्यास हो जाता है तब अपने पहुँचते ही होटलवाले काग़ज़ की लालटेन ले पहुँच जाते ही अच्छी लगने लगती हैं। इधर हम लोगों के पलकों हैं। यहाँ भी स्टेशन के बाहर कितने ही योकनवाले पर नींद सौ सौ मन का बोझ लाद रही थी, उधर होटलकाग़ज़ की लालटेन लिये खड़े थे। हम लोगों को देखते वाले के साथ मिस्टर मेयोनी की फल के प्रोग्राम-सम्बन्धी ही हमारा होटलवाला पास आ गया। दो टैक्सियाँ बात ही खत्म न होती थी। अन्त में निर्णय हुआ, कल किराये पर की गई, और हम कुछ मिनट के रास्ते पर नाश्ता कर सात बजे दो टैक्सियों में हम लोग बेप्पूअवस्थित अपने योकन में पहुँच गये। बेप्पू के हमारे योकन तप्तकण्ड जायँगे और स्नान करके वहाँ से लौटकर १ का नाम मिकसाया था। सीढ़ी पर ही पतले तल्ले के चमड़े बज कर ५५ मिनटवाली गाड़ी पकड़ेंगे। योकन के के स्लीपर थे। हमने अपना बूट जूता खोला, और स्लीपर किराये के बारे में पूछने पर मालूम हुआ, खाने-रहने पहन कर ऊपर के तल्ले पर गये। एक अपेक्षाकृत बड़े के लिए एक आदमी का ५ येन (१ येन - साढ़े बारह कमरे के सामने स्लीपर खोल दिया और हम लोग आना) अर्थात् तीन रुपया साढ़े बारह आना । हमने भीतर दाखिल हुए। कमरा बहुत स्वच्छ था। उसमें समझ लिया, हम अमेरिकन यात्री समझे जा रहे हैं, किन्तु पतले तिनकों की बुनी सीतलपाटियाँ बिछी हुई थीं। एक रात तो रहना था। अलग अलग कमरा लेने पर बीच में एक फुट ऊँची, दो फुट चौड़ी तथा चार फुट किराया और बढ़ जाता, इसलिए तीन तीन आदमियों के लम्बा लकड़ी का स्वच्छ चाकी रक्खी थी। वहीं बग़ल में लिए हमने तीन कमरे लिये। हमें नीचे बिछाने के चीनी मिट्टी की एक बड़ी अँगीठी में लकड़ी के कोयले की लिए दो रुईदार गहे. ऊपर अोढने के लिए दो कईभरे श्राग जल रही थी। मिकासाया की नौकर युवतियों ने लिहाफ़, और सिर के नीचे रखने के लिए एक धान अाकर खूब झुककर प्रणाम करके बैठने के लिए छोटी की भूसा भरी एक छोटा तकिया मिला। ढाई बजे के छोटी गद्दियाँ दीं। हम लोग बैठ गये। ज़रा ही देर में करीब हम सोने पाये। चा-नो-यू (चाय का गर्म पानी) आ गया । काठ की सवेरे नींद सात बजे खुली। नौकरानियों ने फिर छोटी छोटी तश्तरियों में खिलौने जैसे छोटे छोटे अर्ध दण्डवत् अदा की, और वे हमारा गद्दा-तकिया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy