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संख्या ३]
जापान में
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[(१) बेप्पू शिन बोजु जिगोकू का तप्तकुण्ड (२) खौलते जल के बुलबुले (३) कामेकावादोमों
को बौद्ध प्रतिमा और निवास-गृह (४) बेप्पू उमी जिगोकू तप्तकुण्ड पर छात्रायें।]
के बारे में विशेष तौर से पूछा जाता था। किसी किसी के फर्स्ट क्लास के दो गुजराती सज्जन मिस्टर शा और मिस्टर साथ तो छोटी-सी जिरह हो जाती थी। हमारी बारी भी हज़रत साथी हो गये । साढ़े आठ बजे रात को हम एक
आई । बौद्ध भिक्षु और अध्ययन-प्रयोजन पर तो विशेष नहीं अत्यन्त छोटी-सी काठ की मोटर-नौका पर तट की ओर पूछा, हाँ, व्यवसाय (पेशा) के खाने में बौद्ध भिक्षु के साथ चले । आदमी बहुत थे। आस-पास से गुज़रते अग्निबोटों के लेखक भी लिखा था । इस सम्बन्ध में पूछा-"किस विषय हिलोरे से तो मालूम होता था, नौका उलट ही जायगी। पर पुस्तकें लिखी हैं ?” उत्तर दिया-"अधिकतर बौद्धधर्म एक बार तो बाई ओर से धड़धड़ाता हुआ एक स्टीमर पर तथा कुछ यात्रा आदि पर भी" | फिर पूछा- सामने आ भी गया, और दोनों के टकराने में सिर्फ "कितनी उत्तर दिया-"प्रायः बीस १० पूछा-"तब तो दो हाथ का फ़र्क रह गया था। हमारा नाविक दाँत जापान पर भी कोई पुस्तक ज़रूर लिखेंगे ?” उत्तर दिया- निकालने लगा, किन्तु अब उसकी आवश्यकता क्या ? "हाँ, हो सकता है। इस प्रकार इस पूछा-पेखी से छुट्टी बच गये, नहीं तो कितने न तैरनेवाले तो वहीं "राम राम मिली । तब तक साथी लोगों ने यह सलाह कर ली थी कि सत्य" हो जाते।
आज ही रात को मोजी जाकर वहाँ से १०० मील पर जेटी पर पहुँचे । कस्टम के लोगों ने हमारे हैंडबेगों स्थित बेप्पू के तप्तकुण्डों में स्नान करने चला जाय। को देखा, और सिगरेट के बारे में विशेष तौर से पूछा । सेकंड क्लास के गुप्ता महाशय तथा डाक्टर सिद्दप्पा तो सिगरेट अब सभ्य दुनिया की रोज़मर्रा की आवश्यक कोई बहाना बनाकर रह गये, किन्तु उनकी जगह पर चीज़ हो गई है, और जापान में यह व्यवसाय सरकार के
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