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________________ निशा-प्रेमी जीव-जन्तु लेखक, श्रीयुत वनमालीप्रसाद शुक्ल ल ल ना गवान भास्कर अस्ताचल के सहित दसों दिशाओं को सुरभित करने लगीं। व उत्तुङ्ग शिखर पर आरूढ़ हो उनकी अमृतमयी सौरभ की धारा में असंख्य कीटन कर अपनी रक्तिमामय पतङ्ग प्रवाहित होकर अलौकिक आनन्द का उपभोग आलोक की अपूर्व छटा करने लगे जैसा कि दिवाचर कीट-पतङ्गों को नहीं । जैसा कि अपने आविर्भाव नसीब होता। रजनी ने अपने साम्राज्य की कोटि लास के समय पूर्व में प्रदर्शित कोटि प्रजा की ओर वात्सल्य-पूर्ण दृष्टि से देखते हुए कर चुके थे, अपने प्रिय प्रकृति से कहा-मा, कवियों का कथन है कि रजनी के दिवाचर प्राणियों को दिखाकर मुग्ध कर रहे थे कि राजत्वकाल में संसार में सन्नाटा छाया रहता है और सहसा उन पर रजनी का आक्रमण हुआ। वे काँप इने-गिने पशु-पक्षी तथा फूलों के सिवा उसे कोई नहीं उठे । उनके पैर उखड़ गये और पर्वत के उत्तुङ्ग शृङ्ग चाहता, कितना भ्रमात्मक है । यदि वैज्ञानिकों की से लुढ़ककर महोदधि में जा डूबे । उनका पराभव तरह आँख खोलकर देखने की उनमें क्षमता होती देखकर दिवाचर प्राणियों के छक्के छूट गये । सेना- तो वे निस्सन्देह देख सकते कि दिवाचर की अपेक्षा नायक का निधन हो जाने से जो दशा सैनिकों की मेरी प्रजा का समूह कितना विशाल, भयङ्कर, होती है वही उनकी भी हुई। वे जीवन-संग्राम के साहसी और शक्ति-सम्पन्न है। इसे सुनकर प्रकृति क्षेत्र से कोहराम मचाते हुए भाग निकले और अपने मुसकुराई और बोली-सभी समयों में देवताओं से अपने घरों में जा छिपे । इस पराजय से उनकी बड़ी निशिचर संख्या में अधिक, डील-डौल में विशाल क्षति हुई। बेचारों की उद्योग-शक्ति खो गई, साहम और पराक्रम में प्रबल रहे हैं। अतः दिवाचरों से लुट गया, आँखों की ज्योति मन्द पड़ गई, सर्वाङ्ग में निशिचरों में विशेषता का होना स्वाभाविक है। श्रान्त आ विराजा। सब ओर उन्हें भय ही भय ऐसा क्यों होता है, इसका रहस्य मेरे अतिरिक्त और दिखने लगा। यदि इस कुअवसर पर निद्रादेवी का कोई नहीं जानता। मनुष्य केवल इतना ही समझ सहारा न होता तो भय और श्रान्ति से त्राण पाना सकता है कि प्रकृति शान्तिप्रिय नहीं है। वह संसार उन्हें कठिन हो जाता। भर को एक साथ निद्रा में तल्लीन नहीं होने देती। इस दिग्विजय से रजनी का प्रभुत्व और वैभव- रजनी, उसका इतना समझना भी कुछ कम नहीं है । जनित अहंमन्यता की गम्भीर छाया गोलार्द्ध भर में वास्तव में बहुत-से छोटे-बड़े जीव-जन्तु, कीड़ेव्याप्त हो गई। दिवाकर के उत्ताप-पूर्ण शासन से मकोड़े और फूल रात्रि के समय ही जीवन-संग्राम में त्रसित रजनीचरों को इस परिवर्तन से बड़ा सन्तोष प्रविष्ट होते हैं। स्थलचारी जानवरों में हाथी सबसे हुआ। इतना ही नहीं, जब उन्होंने मयङ्कमुकुट और बड़ा होता है। वह स्वतन्त्र अवस्था में रात्रि के नक्षत्रहार से विभूषित रजनी महारानी को प्रत्यक्ष समय ही जीवनोद्योग में लगता है। हाँ, बदली के देखा तब हर्ष की अधिकता से गद्गद होकर स्वागत- कारण जब कभी दिन में अँधेरा हो जाता है तब वह गान गाया। कुमुदिनी तथा उसकी सहेलियाँ आनन्द दिन में भी भोजन की तलाश में निकल पड़ता है। से फूल उठीं। रजनी-गन्धा अपनी सहचरियों के परन्तु यह निश्चित बात है कि सभी ऋतुओं में वह २२६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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