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________________ संख्या ३] मैथिल कवि श्री मॅगनीराम झा २११ मँगनीराम एक कुलीन विद्यानुरागी मैथिल- एक दिन की बात है, इनके कुटुम्बी कृषिकर्म में ब्राह्मण-वंश के रत्न थे। इन ब्राह्मणों का पूर्व का संलग्न थे और स्वयं ये अपने ज्वार के खेतों की वास-स्थान रामभद्रपुर था। मँगनीराम के प्रपिता- रखवाली कर रहे थे। कहते हैं, मध्याह्न-काल में मह हरपति झा भी कवि थे, पर उनकी रचनायें अचानक एक तेज़ आँधी आई और तत्क्षण ही अप्राप्य हैं। इनके ज्येष्ठ पुत्र स्पर्शमणि झा प्रकांड कवि को सरस्वती का दर्शन और उनसे वर प्राप्त वैयाकरण थे तथा पौत्र भुवन झा भी सुकवि थे। हुआ। उस ग्राम के निवासी उस स्थान का निर्देश मॅगनीराम का बाल्यकाल अपनी ऐतिहासिक जन्म- आज भी करते हैं। उस स्थान पर एक पीपल का भूमि के प्राकृतिक सौन्दर्यपूर्ण वातावरण तथा पेड़ है। कहते हैं कि यह पेड़ उनके समय का है। वागमती के तीरस्थ बालुकाकीर्ण अरण्य प्रांतों में वह स्थान 'विरती टोले' के नाम से प्रसिद्ध है और व्यतीत हुआ था। मैंगनीराम की कवित्व-शक्ति पदुमकेर ग्राम से पश्चिम कुछ ही दूर है। कहते हैं किसी अंश में वंश-परंपरागत थी, पर उदार- कि सरस्वती की आज्ञा के अनुसार मँगनीराम प्रकृति के मधुर अंकस्पर्श ने उसका विशेष पोषण मनुष्यों से बातचीत करना बंद कर एकान्तवास किया। ये साक्षर मात्र थे। १८ वीं शताब्दी के उस करने लगे। यह देखकर उनके पिता को संदेह हुआ पतनोन्मुख मिथिला में भी यत्किचित् शिक्षा उपलभ्य कि किसी ने जादू तो नहीं कर दिया है। वे थी, उसे भी ये अभाग्यवश न प्राप्त कर सके थे। उद्विग्न हो उठे । शीघ्र ही मॅगनीराम चिकित्सा कल्पना-जगत ही इनकी पाठशाला थी और जीवन के लिए अपने ननिहाल वसतपुर भेजे गये, जो की अनुभूतियाँ ही इनके गुरु । ऐसा ज्ञात होता है कि बैरगनियाँ से प्रायः ४ मील उत्तर नैपाल-राज्य की ये छुटपन से ही कवितादेवी के एक अल्हड़, पर सीमा के भीतर है। कहते हैं, इस रहस्यपूर्ण घटना दृढ़ उपासक थे और इनके स्वभाव में सरसता के पश्चात् मँगनीराम की कवित्वशक्ति पूर्ण रूप और विनोदप्रियता कूट कूट कर भरी थी। तत्का- से परिस्फुटित हो गई और ये उत्कृष्ट कविताओं की लीन प्रथानुसार बाल्यावस्था में ही मुजफ्फरपुर के रचना करने लगे। समीप पकड़ी ग्राम के 'ज्ञानी ध्यानी पाँजिवाले' एक कवि के जीवन की दूसरी विचित्र घटना उनके उच्च कुल की मैथिल-कन्या से इनका पाणिग्रहण ननिहाल-निवास-काल की है। उनके मामा नैपालहुआ। इन्होंने विवाह-काल में ही अपनी 'विधिकरी' राज्य के एक ज़मींदार अर्थात् कर उगाहनेवाले से यों मीठी चुटकी ली हाकिम थे । एक दिन प्रातःकाल अपने मामा का लोटा 'वर बाभन कन्या धनुकाइन लेकर ये नित्यकर्मों से निवृत्त होने चले। शौच आदि पकड़ी गामक विधिकरी डाइन ।' से निवृत्त होकर ये वागमती के किनारे बैठे लोटा माँज इस पर विधिकरी रूठ गई तब झट पद-परि- रहे थे। अकस्मात् लोटा नदी में गिर कर बह गया। वर्तन कर उसे यों सुना दिया उसे पाने के लिए मँगनीराम नदी की प्रशंसा में 'वर बाभन कन्या सोतिआइन कविता-रचना करने लगे, पर दोपहर हो गया और पकड़ी गाम क विधिकरी गाइन ।' उन्हें लोटा न मिला। तब तक उनके मामा को इस बात इससे विधिकरी प्रसन्न हुई। की खबर होगई। अपने मित्रों तथा समीप की मँगनीराम के जीवन-वृत्तान्त में अनेक अलौ- नेपाल-राज्य की कचहरी कडिरवाना के उच्च किक बातों का सम्मिश्रण पाया जाता है। एक ऐसी अधिकारियों के साथ वे वहाँ गये। लोटा न आश्चर्यजनक घटना इनके १८ वें वर्ष में घटी थी। मिलने पर कोपाकुल होकर कवि ने नदी की निन्दा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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