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________________ २०० सरस्वती [भाग ३६ [कुमार दिलीपसिंह [पाटौदी के नवाब इफ़्तिखार अली] उस मैच की वहाँ काफ़ी धूमधाम हुई थी। खेलों के जमा दिये। क्रिकेट के अन्यतम जजों के शब्दों में लाडू शौकीन ब्रिटन लाखों की संख्या में उमड़ आये थे। के उस विस्तृत ग्राउंड में जारडिन 'जिब्राल्टर की चट्टान' पाश्चात्य देश खेलों को अपने राष्ट्रीय जीवन में कितना की तरह अचल-अटल खड़ा था। सचमुच जारडिन एक महत्त्व देते हैं, यह बात हम भारतीयों को शायद कम विजयी जनरल की तरह था। भारतीय खिलाड़ियों के मालूम है। इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया की क्रिकेट-टीमें संसार कौशल ने इस क्रिकेट के खिलाड़ी के सम्मुख सिर झुका | में अपना सानी नहीं रखती हैं। क्रिकेट तो इंग्लेंड का दिया। स्वयं सम्राट शाही परिवार के साथ इस मैच में राष्ट्रीय खेल है । इसकी विजय वहाँ किसी संग्राम की विजय उपस्थित थे। उन्होंने भारतीय टीम को बधाई दी, पर | से कम महत्त्व नहीं रखती है। विजय की बधाई उनके नसीब में न थी। भारत की यह भारत के युवक खिलाड़ियों का कौशल देखने के पराजय तो थी, पर यह पराजय ठीक अठारह महीने बाद | लिए लाखों आँखें व्यग्र थीं। उनकी आँखों में व्यग्रता जारडिन के नायकत्व में एम० सी० सी० के भारत-भ्रमण की खुमारी तो थी ही, साथ ही इंग्लैंड की निश्चित में भारतीय टीम की बनारस में होनेवाली प्रथम विजय | विजय की विश्वास-ज्योति भी झलक पड़ती थी । इंग्लैंड की सूचना-मात्र थी। एम० सी० सी० ने १६३३ में इंग्लैंड की टीम क्रिकेट में अनेक बार दूसरे राष्ट्रों से लोहा ले चुकी के विख्यात खिलाड़ियों के साथ भारत का दौरा किया | थी, पर भारतीय खिलाड़ियों का यह पहला ही मौका था। था। यहाँ पर भी वे तीन टेस्ट मैच बम्बई, कलकत्ता एवं | मैच प्रारम्भ हुअा। भारतीय खिलाड़ियों ने खेल के मैदान मदरास में खेले थे। बम्बई की पराजय में अमरनाथ के | में उतरते ही इंग्लैंड के तीन अन्यतम खिलाड़ियों को ११८ रन, कलकत्ते के ड्रान मैच में दिलावर हुसेन की जिन पर इंग्लेंड विजय का गर्व कर सकता था, १६ रन अपूर्व बैटिंग और मदरास की हार में अमरसिंह की बोलिंग में आउट कर दिया। इस प्रकार के खेल की अाशा भारतीय क्रिकेट के उज्ज्वल भविष्य की अाशा-किरणें थीं। किसी को नहीं थी। इंग्लैंड का कैप्टेन हैरान था। बड़ी भारतीय क्रिकेट-टीम इंग्लैंड की टीम के समान विख्यात विषम स्थिति आ पड़ी थी। पर भारत के भाग्य में विजय नहीं है, पर खेल में बराबरी का दावा करने योग्य अवश्य | न थी। जारडिन ने इंग्लैंड के उखड़े हुए पाँव फिर से हो गई है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar Umara. Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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