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________________ संख्या ३] विजय के पथ पर १९७ [टोकियो के 8 वें सुदूर प्राच्य के अोलिम्पिक के उद्घाटनोत्सव में भारतीय खिलाड़ी] [श्री नायडू में भाग लेने को भेजे गये थे। पर वहाँ भी स्थिति निराशामें भारत के चार युवक श्री मेहरचन्द (पञ्जाब), एम० पूर्ण ही रही । जापान ने, जो कुछ वर्षों पहले खेलों में भारत सट्टन (बंगाल), आर० वरनीयक्स (बंगाल) तथा एन० जैसा ही पिछड़ा हुआ था, सिर्फ चार वर्षों के परिश्रम में सी० मल्लिक (बंगाल) गये थे । भारतीय प्रोलिम्पिक कमेटी आशातीत उन्नति कर ली है। पिछले अोलिम्पियड में तैरने ने यहाँ की कसौटी में इन्हीं चार को चुना । फिर भी ये में तो उसका स्थान प्रथम रहा ! यह है अध्यवसाय और खेलों सके। एम० सदन तो एक बार १०० के प्रति प्रेम का परिणाम! हमारे यहाँ के कालेजों में पढने| गज़ की दौड़ की, दूसरी हीट (heat) में चतुर्थ हुए। वाले अधिकांश युवक ताज़ा से ताज़ा फैशन के लिए | मल्लिक भी ४०० गज़ तैरने की दौड़ में चतुर्थ हुए। घंटों पेरिस के फ़ैशन-सम्बन्धी पत्रों के लिए हैरान रहेंगे, | जो कुछ भी सफलता या असफलता मिली, यही थी। बार पर खेलों में कुछ भी समय बिताना समय की बरबादी बार की इस असफलता का कारण भी है। वह यह है समझेंगे। ऐसी स्थिति में और क्या हो सकता है ? अवश्य कि यहाँ के युवकों में खेलों के प्रति रुचि ही कम है। कुछ समय से खेलों के प्रति जनता की रुचि गई है। वे अपनी किताबी दुनिया में ही रहना अधिक पसन्द स्कूलों एवं कालेजों में भी व्यायाम-शिक्षा का प्रचार किया करते हैं। और जिनके रुचि होती है उन्हें उत्साह और गया है । स्थान स्थान पर व्यायामशालायें भी खुल रही हैं । उचित शिक्षण नहीं मिलता। १६३० में यहाँ से कुछ मदरास का फ़िज़िकल ट्रेनिङ्ग कालेज और अमरावती की युवक जापान की राजधानी टोकियो के सुदूर प्राच्य के खेलों 'हनुमान-व्यायामशाला' प्रख्यात ही हैं। मदरास के प्रोफ़े Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara. Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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