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________________ सरस्वती [भाग ३६ ही करते । परन्तु जब मुसलमानों की भीड़ों ने बलपूर्वक है। परन्तु यदि यही बात वे किसी पुस्तक का या किसी सिक्खों को उस अप्रिय कार्य से विरत करना चाहा तब लेखक का नाम लेकर कहते तो उन्हें लेने के देने पड़ सिक्ख भी उत्तेजित हो उठे और उन्होंने अपने नेताओं जाते । बच्चों की किताबों में क्या, यहाँ तो प्रौढ़ों तक की की अवज्ञा करके मस्जिद को गिरा दिया। वह मस्जिद किताबों में इतिहास-सम्बन्धी भूलें थोड़ी नहीं, अधिक गत १७० वर्षों से सिक्खों के अधिकार में है और उपासनागृह से अधिक संख्या में पाई जाती हैं । के रूप में उसका कभी उपयोग नहीं हुअा। मुसलमानी समय उदाहरण के लिए ऐसी प्रसिद्ध पुस्तकों तक का में उसमें अदालत होती थी और कतिपय सिक्खों को वहाँ नामोल्लेख किया जा सकता है जो वर्षों से स्कूलों में ही नहीं, से कठोर से कठोर दण्ड दिये गये हैं। अतएव वह कालेजों और यनिवर्सिटियों तक में पाठ्य-पुस्तकों के रूप सिक्खों की दृष्टि में भी और न सही तो एक ऐतिहासिक में पढ़ाई जाती हैं और उनकी इतिहास-सम्बन्धी एक-दो मस्जिद तो अवश्य ही थी । दुःख की बात है कि मुसल- नहीं पचीसों भूलों की ओर कोई ध्यान तक नहीं देता। मानों की उग्रता के कारण सिक्खों ने उसे अन्त में गिरा जिन लोगों ने साहस करके उनकी भूलों का निर्देश किया देना उचित समझा। है उनके सत्परामर्श की ओर अाज तक किसी ने ध्यान ___ मस्जिद के गिराये जाने पर मुसलमानों ने और भी . नहीं दिया और उनके संस्करण के संस्करण निकलते जा रहे उग्ररूप धारण किया और कई दिनों तक लाहौर उनके हैं। कदाचित् उनके विद्वान् रचयिता भूल-स्वीकार कर लेने कारण भयावह स्थिति को प्राप्त रहा। अन्त में जब कति- में अपनी हेठी समझते हों। इससे इतना तो साफ़ पय नेताओं ने उनके आन्दोलन की निन्दा की तब वे ही है कि हिन्दीवाले या तो इतिहास जानते ही नहीं और शान्त हुए और अब वहाँ पूर्ण शान्ति विराजमान है। यदि जानते हैं तो वे उसके विचार-क्रम को हृदयङ्गम लाहौर की इस घटना ने वहाँ के मुसलमानों और करने से मुकर जाते हैं। चाहे जो हो, यह सचमुच सिक्खों को एक दूसरे को एक-दूसरे से जुदा कर दिया आवश्यक है कि ऐसी एक भी पुस्तक पाठ्य पुस्तकों में नहीं है और उनमें पहले जैसा सम्बन्ध फिर स्थापित होने में ली जानी चाहिए जिसमें इतिहास-विरुद्ध बातें लिखी हों। अब कुछ समय लगेगा । क्या ही अच्छा होता कि इन दोनों जातियों के नेता अब भी चेत जायँ और जो हो ग्रामसुधार का आयोजन गया सा हो गया, ऐसा समझकर अापसी मेल-जोल बढ़ाने भारत ग्रामीणों का देश है। यहाँ की जनसंख्या के लिए यत्नवान हों । इस अवसर पर सिक्खों ने शान्ति ग्रामों में ही निवास करती है और यहाँ का प्रधान पेशा के साथ इस भयंकर परिस्थिति का सामना किया है, खेती है। केवल १० फ़ी सदी लोग उद्योग-धन्धों या इसके लिए वे कम प्रशंसा के पात्र नहीं हैं । आशा है, ज्यों नौकरी-चाकरी के द्वारा अपना निर्वाह करते हैं। परन्तु ८० ज्यों समय बीतता जायगा, इन दोनों जातियों के बीच फ्री सदी जनता को खेती-बारी पर ही गुज़र करनी पड़ती है। की कटुता अपने आप शान्त हो जायगी। वास्तव नई सभ्यता के प्रचार के पहले भारतीय ग्रामीणों की में यही आवश्यक भी है। दशा बहुत कुछ सन्तोषजनक थी । उनके समाज का संगठन ही ऐसा था कि साधारण समय में उन्हें किसी भी तरह की हिन्दी में इतिहास-ज्ञान की उपेक्षा कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता था। उनकी सारी हिन्दी के एक विद्वान् लेखक ने अभी हाल में हिन्दी- आवश्यकतायें उनके गाँवों में ही पूरी हो जाती थीं। वालों का ध्यान इस बात की ओर आकृष्ट किया है कि कम- परन्तु महायुद्ध ने घोर संकट उपस्थित कर दिया । से कम स्कूली किताबों में ऐसी बातें न लिखी जाया करें उसके फल-स्वरूप संसार के बड़े बड़े सम्पन्न देशों की जो इतिहास की दृष्टि से अशुद्ध हों। बात बहुत समुचित आर्थिक दशा डाँवाडोल हो गई। तब बेचारा भारत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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