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संख्या २]
सामयिक साहित्य
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बंगलोर के डाक्टर फ़ाउलर नामक एक प्रसिद्ध कृषि- पैलिटी खरीदारों की माँग को ठीक से पूरा नहीं कर पाती। विशेषज्ञ ने एक तरीका निकाला है जिसके द्वारा मैले से पता चला है कि इस खाद से प्रतिएकड़ ५० टन तक एक प्रकार की गन्धरहित और बहत ही उत्तम खाद तैयार (१ टन लगभग २७॥ मन) ईख होती है। जबकि साधारणहोती है। यदि उनके तरीके का प्रचार हो गया तो मैले तया एक एकड़ में २५ टन से अधिक नहीं पैदा होती । इस से अच्छी खाद तैयार की जाया करेगी। इसके अतिरिक्त खाद से तरकारियाँ भी बहुत अधिक तादाद में उत्पन्न स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी लाभ होगा, क्योंकि मैले की होती हैं। वैज्ञानिक विश्लेषण करके देखा गया है कि गन्दगी से लोग बच जायेंगे।
डाक्टर फ़ाउलर के तरीके से बनाई गई खाद में इतना बहुत प्राचीन काल से मैला एक बहुत अच्छी खाद रासायनिक परिवर्तन हो जाता है कि उसमें मैले का अंश माना जाता रहा है। जापान और चीन में तो इसका बिलकुल शेष नहीं रहता और मैले में रोगों के जो कीटाणु खाद के तौर पर बहुत अधिक उपयोग होता है। किसान पाये जाते हैं, वे भी नष्ट हो जाते हैं। लोग पैखानों से मैले को इकट्ठा करके खेतों में डालते हैं। म्युनिसिपैलिटियों को प्रतिवर्ष मैले की सफ़ाई में बहुत पर यह तरीका स्वास्थ्य के लिए हानिकारक और घृणित बड़ी रकम खर्च करनी पड़ती है। यदि वे इस मैले से है। शंघाई की म्युनिसिपैलटी से एक ठेकेदार ने खाद के खाद बनवायें तो सफ़ाई का खर्च भी कम हो जाय और लिए मैला इकट्ठा करने का ठेका लिया है। वह म्युनि- खाद बेंचकर वे काफ़ी धन प्रतिवर्ष प्राप्त कर सकें। इसके सिपैलटी को इसके लिए ६ लाख रुपये साल में देता है। अतिरिक्त मैले को बाहर फेंकने से जो बीमारियाँ फैलती भारत में मैला एक घृणित चीज़ समझा जाता है, और हैं वे भी न फैलें । इस तरीके को काम में लाने के लिए इसलिए खाद के तौर पर इसका प्रयोग नहीं होता। यदि बड़ी बड़ी मशीनें खरीदने अथवा बड़ी पूँजी लगाने की चीन और जापान की स्थिति के अनुसार हिसाब लगाया ज़रूरत नहीं है। इसका प्रबन्ध बहुत कम खर्च पर और जाय तो पता चलेगा कि भारतवर्ष में प्रत्येक वर्ष सात आसानी से हो सकता है। आशा है, म्युनिसिपल बोर्ड अरब रुपये की खाद मैले के रूप में नष्ट हो जाती है। इस ओर ध्यान देकर राष्ट्र का उपकार करेंगे।
मैले से खाद बनाने का डाक्टर फाउलर का तरीका इस प्रकार है--मैले और शहर की अन्य गन्दी चीज़ों को
निराधार विधवा एक विशेष अनुपात में मिलाकर सर्द स्थान पर रख देते महात्मा गान्धी 'हरिजनसेवक' में लिखते हैं- . हैं। कुछ समय के बाद इसको बड़ी तेज़ आग में एक सजन ने जिनके कई स्वजन क्वेटा के भूकम्प उबालते हैं। आठ हफ्ते बाद यह मिश्रण बिलकुल में मर गये हैं, एक १७ वर्ष की युवती की दशा का वर्णन गन्ध-रहित बन जाता है और इसकी शक्ल फारम की करते हुए एक बड़ा हृदयविदारक पत्र लिखा है। वह साधारण खाद की भाँति हो जाती है। यह खाद ईख, युवती अपना पति, दो महीने का एक बच्चा, ससुर और केला, नारियल और तरकारियों की फ़सल के लिए बहुत देवर, यानी ससुराल के सभी स्वजनों को क्वेटा के भूकम्प ही मुफ़ीद होती है । डाक्टर फ़ाउलर के तरीके का प्रयोग में गँवा बैठी है। पत्र-लेखक सजन कहते हैं कि यह त्रावनकोर-रियासत की कीलन म्युनिसिपैलिटी ने किया है लड़की किसी तरह बच गई, और जो कपड़े उस वक्त और वह सही पाया गया है।
उसके तन पर थे वही
है। यह बहन __ मैसूर-म्युनिसिपैलिटी शहर के कूड़े-कचरे से प्रतिवर्ष उनके चाचा की लड़की है। उस भाई की समझ में यह तीन हज़ार टन खाद तैयार करती है। यह खाद इतनी नहीं आता कि किस तरह उस लड़की को आश्वासन दिया उत्तम होती है कि किसान लोग इसे बड़ी जल्दी खरीद लेते जाय, और उसका क्या किया जाय । पत्र समाप्त करते हुए हैं । इस खाद की खपत इतनी होने लगी है कि म्युनिसि- वे सजन लिखते हैं
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