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________________ १८० सरस्वती [भाग ३६ देशों के बहुसंख्यक छात्र प्रतिवर्ष योरप और अमेरिका के पहली यह कि योरप के अन्यान्य स्थानों की तुलना में विश्वविद्यालयों में भर्ती होते हैं । विदेशों में शिक्षा पाकर . किसी किसी विषय की इंग्लेंड की शिक्षा अधिक खर्चीली छात्रों की बहुदर्शिता बढ़ जाती है । डाक्टर कोयली ने है। अतः खर्च का भार उठाने में अभिभावकों को कठिअपनी रिपोर्ट में भारतीय छात्रों की बड़ी प्रशंसा करते हुए नाइयाँ झेलनी पड़ती हैं । डाक्टर कोयली ने बहुसंख्यक कहा है--"संसार का कोई भी देश उनके लिए गर्वित हो छात्रों की आर्थिक दुरवस्था का उल्लेख किया है और सकता है।" इससे प्रमाणित होता है कि "ज्ञान विज्ञान उनके अभिभावकों को सावधान कर दिया है । दूसरी बात के सभी विभागों में और सभी अर्थकारी और वृत्तिमूलक यह है कि राजनैतिक कारणों से भारतीय छात्रों के साथ विद्याओं की प्रतियोगिता में भारतीय छात्र पश्चिमीय इंग्लैंड में समानता का बर्ताव नहीं होता। अन्य देशों के छात्रों से टक्कर ले सकते हैं ।" भारतीय छात्रों के सम्बन्ध में विश्वविद्यालयों और व्यावसायिक शिक्षा-संस्थाओं में ये प्रशंसा के वाक्य अवश्य ही उत्साहवर्द्धक हैं। भारतीय छात्र सहज में ही प्रवेश पा जाते हैं। योरप के कुछ वर्ष पहले धनिकों के लड़के शौक से विदेशों अन्यान्य देशों में भी भारतीय छात्रों का अधिक संख्या की शिक्षा की ओर झुकते थे । लेकिन इस प्रकार की मनो- में जाना इन दोनों कारणों से उचित है । वृत्ति अब हट गई है । अब अधिकांश छात्र किसी खास उद्देश्य के साथ विदेश जाते हैं । परन्तु भारत की आर्थिक खाद बनाने का एक नया तरीका दुरवस्था के कारण इन विशेष शिक्षित छात्रों की अवस्था __हमारे शहरों का बहुत-सा कूड़ा प्रतिवर्ष बेकार भी स्वदेश में सन्तोषजनक नहीं होती। बेकारी की भीषण जाता है। यदि हमारे देश के म्युनिसिपल बोर्ड इस चोट उन पर भी पड़ती है । इसके सिवा उनकी शिक्षा की ओर ध्यान दें तो इस कूड़े का अच्छा उपयोग हो प्रतिष्ठा भी पहले की भाँति नहीं रह गई है। लेकिन इसके सकता है और उसकी अच्छी खाद बनाई जा सकती लिए योरपीय शिक्षा पर दोषारोपण नहीं किया जा सकता। है। अन्य देशों में ऐसा होता भी है। 'कलकत्ता क्योंकि बेकारी की समस्या के लिए यहाँ की राष्ट्रीय और इंडस्टियल' गजट लिखता है-- सामाजिक व्यवस्था ही उत्तरदायी है । भारत में यदि ऊँची अन्य देशों की तुलना में भारतवर्ष की खेती बहुत शिक्षा का आदर घट गया है तो यह भारतीय राष्ट्रनायकों पिछड़ी हुई है और इसका एक प्रधान कारण है इस देश के लिए लज्जा की बात है। मनुष्य की जीविका के लिए में अच्छी और उपयोगी खाद का अभाव । वैज्ञानिकों का जैसे शिल्प और वाणिज्य का विस्तार ज़रूरी है, उसी प्रकार कहना है कि रासायनिक और खनिज पदार्थों की अपेक्षा उस शिल्प-वाणिज्य को भली भाँति चलाने के लिए कूड़े और मैले से कहीं अच्छी खाद बन सकती है। परन्तु शिक्षित व्यक्तियों की ज़रूरत है। पर आर्थिक कमज़ोरी के हमारे देश में ये चीजें नष्ट कर दी जाती हैं, उनका उचित कारण भारतीय युवकों की देशी-विदेशी दोनों डिगरियाँ उपयोग नहीं किया जाता। भारस्वरूप मालूम हो रही हैं । डाक्टर कोयलो ने बहु- अच्छी खेती के लिए खाद की आवश्यकता होती है । संख्यक भारतीय छात्रों को विदेशों में देखकर बेकारी की आजकल हमारे देश भारत में खेतों में टीक से खाद नहीं समस्या के नाम पर परोक्ष रूप से कटाक्ष किया है और डाली जाती, इसलिए यहाँ की खेती की पैदावार अन्य अभिभावकों के हज़ारों रुपये खर्च हो जाने पर कुछ दुख उन्नत देशों के मुताबिले बहुत कम है। ग्रेटब्रिटेन में प्रतिप्रकट किया है। पर डाक्टर कोयली का यह भाव समर्थन एकड़ जमीन में लगभग २५ मन और भारत में लगभग करने योग्य नहीं है। ७ मन गेहूँ उत्पन्न होता है। मिस्र में एक एकड़ ज़मीन परन्तु इंग्लैंड में शिक्षा के लिए जानेवाले भारतीय में लगभग १२ मन चावल पैदा होता है, पर भारत में छात्रों को दो बातों पर ध्यान देकर सावधान रहना चाहिए। इसका आधा भी नहीं होता। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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