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________________ कला-सम्बन्धी एक विचार-पूर्ण लेख । सत्यं शिवं सुन्दर लेखक, श्रीयुत राधामोहन गोकुल जी क) वों के व्यक्त करने का सर्वोच्च और अन्तःक्रिया का हाथ होता है, क्योंकि इन सबका || साधन कला है। कला- प्रभाव उसके मन पर पड़ता है। भाव या विचार द्वारा ही भाव मूर्त्तिमान वास्तविक जगत के बाद पैदा हुआ है। इस जगत किये जा सकते हैं। कला की चीजों का जो प्रभाव हम पर पड़ता है उन्हीं को के अस्तित्व का हेतु ही हम जानते हैं। निरपेक्ष, निद्वन्द्र और सर्वथा पूर्ण व्यञ्जना या व्यक्तीकरण है। भाव मानवीय मन की गति के बाहर है। हमारा ज्ञान कला मनोगत विचारों को उन्हीं सम्बन्धों तक परिमित है जो वास्तविक चीजों प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर कर देती है। भावों की पीठ या के पूर्ण योग वार्थान प्रकट विश्व और उसके उस आधार है इच्छा, आकांक्षा, प्रतिभाशालिनी साधा- प्रभाव में है जो हम पर पड़ता है। उचित और अनुरण समझ की निरन्तर मननशीलता, मन का चित का विचार भी हममें अनुभव और विवेक के। मातृत्व और वह प्रबल अनुराग जिसस अवस्थान- निर्णय से ही होता है । वस्तुओं का सौन्दर्य भी भङ्गी, क्रमशः विस्तार, बाह्य रेखा, रंग और उल्लास उसी सम्बन्ध पर निर्भर होता है जो रूपों, रंगों और , का आविर्भाव होता है। व्यक्त करने के दंगों में होता है और हमम संपृक्त होता ___ यह तो मानना ही पड़ता है कि जिस तरह सर्वथा है। सौन्दर्य का मूल हमें सब के तथ्य में मिलता है, पूर्ण नीतिमत्ता नहीं हो सकती, चैम ही मौन्दर्य भी इन्द्रिय-ज्ञान की परिधि में जान पड़ता है. उस सा नहीं हो सकता जहां इत्यलम कहने का कार्ड अानन्द में प्रतीत होता है जो हमें अपने वद्धिबल से साहस कर सके । इससे प्रकट होता है कि सौन्दर्य या किसी नवीन याविष्कार या अन्वेपण से मिलता है। आचार सापेक्ष होता है, निरपेक्ष नहीं होता । जहाँ सौन्दर्य प्राणों को उदाधित करता है. निद्रा और तक मनुष्य का व्यापार देखा जाता है, हमें यही प्रतीत प्रमाद को हटाता है, किन्तु यह क्रिया प्रत्ययों, स्मृतियों, होता है कि उसके विचार उसके परिकर से उत्पन्न अनुभवों श्रादि से होती है। होते हैं, उसके विचारों की उत्पत्ति में क्रिया, प्रतिक्रिया कला कल्पना-शक्ति को उत्कर्पित भार उद्रोधित Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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