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________________ संख्या २] विवाह की कुछ विचित्र प्रथायें विवाह स्वयं होते देखा था। जो लड़की विवाह का रजि- है। भारतीय और अरब-विवाह में बहुत कुछ समता स्टर लिये बैठी थी वह कुछ औघाई हुई और कुछ खीजी है, विशेषतः भारतीय मुसलमानी विवाह में और हुई थी। प्राइवन की बारी आने पर उससे व्यवसाय, जन्म- अरब-विवाह में। अरब-विवाह धार्मिक नहीं है, बरन तिथि, परिवार की स्थिति और स्वास्थ्य-सम्बन्धी सवाल पूछे कानूनी और सामाजिक है। निकाह निकाहनामा अथवा गये। इन सबके बारे में प्राइवन ने दस्तावेज़ दाखिल विवाह-पत्र से होता है । महर अर्थात् दहेज़ से कन्या का ' कर दिये । वही मारूस्या ने भी किया। नाम के लिए विक्रय-सा होता है। छुहारों से लगाकर महल तक दहेज़ फ़ीस भी दाखिल कर दी गई और प्राइवन और मारूस्या में शामिल होते हैं । इन्हें देकर कन्या खरीदी-सी जाती है। पति-पत्नी हो गये। उन दोनों के पास अलग कमरा लेने शादी तय हो जाने पर और निकाहनामा लिखे जाने पर वधू के लिए रुपया न था। आइवन और उसका एक साथी सजाई जाती है। चाँदी की बालियाँ और चाँदी के कड़े-छड़े एक कमरे में रहते थे और मारूस्या छात्रों के एक बोर्डिंग उसे पहनाये जाते हैं, मुँह रँगा जाता है, आँखों में सुर्मा में रहती थी। शादी के कछ सप्ताहों के बाद श्रीमती केनेल लगाया जाता है. हिना से बाल रंगे जाते हैं और हाथों-पैरों ने मारूस्या से पूछा-तुम्हें विवाहित जीवन कैसा पसन्द पर भी रंग चढ़ाया जाता है । वस्त्र श्वेत पहनाये जाते हैं। आया ? उत्तर में मारूस्या ने कहा-मैं कैसे बताऊँ ? मुहूर्त देखकर जुलूस गोधूलि-बेला के समय घर से निकलता मैं प्राइवन के यहाँ जा नहीं सकती। प्राइवन मेरे यहाँ है। दिन भर मेहमानों की खातिर की जाती है, पर अलग श्रा नहीं सकता। और जब मैंने एक कमरा गर्मी भर के अलग। लड़की के घरवाले अपने मेहमानों को खिलातेलिए ठीक किया तब श्राइवन की हिम्मत न पड़ी कि वह पिलाते हैं और लड़केवाले अपने मेहमानों को। इतर लगाया गृहस्थों में अपना नाम लिखाये, क्योंकि ऐसा करने से जाता है, गुलाबजल छिड़का जाता है, हर तरह की खातिर उसका कमरा सरकार उससे छीन लेती। और बिना होती है । जुलूस डाली के साथ साथ चलता है। चार श्रादपुलिस में इस तरह की इत्तिला किये हुए प्राइवन मेरे मियों के कन्धों पर लदकर सजा हुआ मियाना चलता है । साथ रात में रह नहीं सकता। इसलिए हम लोग साथ तो उसमें वधू बैठी होती है । खूब बाजे बजते हैं, गाने गाये रह ही नहीं सकते । गाँवों में अभी गिरजाघरों में विवाह- जाते हैं, आतिशबाज़ी छूटती है, मशालें जलती हैं । गरज़ संस्कार प्रचलित है । सरकारी दफ्तरों में विवाह दर्ज हो यह कि वधू की वही दुर्गति होती है जो भारत में होती है । जाने के बाद पुराने रंगीन कपड़ेवाले विवाह गिरजाघरों में वर के दरवाज़े पर पहुँचने पर सब आदमी बाहर रह जाते अब भी होते हैं । पर शहरों में अक्सर समय और परि- हैं, वधू भीतर जाती है। भीतर औरतें एक अर्ध-चन्द्र के स्थिति के अनुसार विवाह होते और टूटते हैं। कोई अपना आकार में बैठी हुई ढोलकें पीटती हैं। एक ऊँची वेदी पर कमरा दूसरे को किराये पर नहीं दे सकता, इस- दूल्हा-मियाँ बैठे होते हैं। उनकी रिश्तेदार औरतें एक लिए अक्सर लोग मकान-मालकिन से ही विवाह कर एक करके उनके सामने जाती हैं और उनका गाल चमती लेते हैं। जो कुमार पूरे एक कमरे का मालिक है वह हैं। फिर मा वधू का हाथ पकड़े हुए भीतर दाखिल होती अमीर है और कुमारियाँ उससे विवाह करने को बहुत है। वधू के सिर से रेशमी बुर्का हटाया जाता है । वह उत्सुक रहती हैं, और एक कमरे की मालकिन कुमारी को भी तीन बार अपने पति के सामने घुमाई जाती है और उसे विवाह के इच्छुक कुमार घेरे रहते हैं। बाद में यदि परि• अपनी आँखें बन्द रखनी पड़ती हैं। तीसरे चक्कर के बाद स्थिति में अन्तर हो जाता है तो तलाक से विवाह टूट जाता वर उठता है और वधू का हाथ पकड़कर भीतर के कमरे है। फिर भी विवाह प्रायः प्रेम के कारण ही होते हैं। में चला जाता है । शादी खत्म हो जाती है और दरवाज़ा अरब-लड़की के जीवन में विवाह का दिवस सबसे बन्द हो जाता है। अरबों का विवाह-संस्कार ऐसा ही महत्त्वपूर्ण होता है। उसका हाल जना वान्त ने लिखा होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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