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________________ १३६ सरस्वती [भाग ३६ कि अब शादी का समय आ गया है । नाकाडो लड़का इस तरह पीना ही है। इसे सान-सान-क-डो कहते हैं । बताता है और उसके बाद वर-वधू एक दूसरे को प्रथम सान-सान-क-डा का शाब्दिक अर्थ "तीन बार तीन बार" बार देखते हैं । यदि दो में से कोई भी एक दूसरे को है। इसका तात्पर्य क्या है, किसी को ठीक तरह नहीं मालूम पसन्द न पाया तो बात वहीं पर खत्म हो जाती है । पर है। इसके बाद वधू उठकर दूसरे कमरे में जाती है और ऐसा बहुत कम होता है । एक दूसरे को पसन्द कर लेने वहाँ शोक-सूचक श्वेत वस्त्र उतारकर काले या गहरे लाल पर कपड़े की सौगात एक दूसरे को भेजी जाती है । फिर वस्त्र पहनती है। इसी पोशाक में वह अतिथियों के साथ मुहूर्त विचार कर विवाह का शुभ दिवस निश्चित किया दावत में शरीक होती है | वधू को दो बार वस्त्र और जाता है । वधू को उस दिन खास कपड़े पहनाये जाते हैं। बदलने पड़ते हैं। पहले तो वह रंगीन कपड़े पहनती है, और उसके बाल खास तरह का जूड़ा बनाकर बाँधे जाते फिर रात्रि के वस्त्र पहनती है। उसके रात्रि के वस्त्र पहनने हैं । पहले उसके मुँह और उसकी गर्दन पर सफ़ेद चन्दन पर अतिथि उठकर चले जाते हैं । जापानी विवाह में कोई लगाया जाता है और फिर उसे सफ़ेद कपड़े पहनाये जाते धार्मिक संस्कार नहीं होता है। राज्य का भी विवाह से है । वे कपड़े मृत्यु-शोक के सूचक होते हैं। और उनके कोई सम्बन्ध नहीं होता। केवल पुलिस को खबर दे दी पहनाने का तात्पर्य यह होता है कि उस दिन से वधू अपने जाती है, और वह भी इसलिए कि जापान में पुलिस को पिता के घरवालों की दृष्टि में मर जाती है । पर उन यह जानना आवश्यक है कि किसके कौन रिश्तेदार हैं सफ़ेद कपड़ों के नीचे वधू रेशमी लाल रंग के कपड़े पहनती और कौन रात में कहाँ सोता है । दलाल का पेशा जापान है। लाल रंग जापान में जन्म के आनन्द का सूचक है में बड़ा ऊँचा समझा जाता है और यद्यपि बड़े घरानों में और उसके प्रयोग का तात्पर्य यह होता है कि वधू का उसका कोई काम नहीं होता, तो भी नाम के लिए उसकी अपने पति के घर में जन्म हुआ है। एक स्थान में मृत्यु उपस्थिति वहाँ भी अनिवार्य है । तलाक जापान में जायज़ का शोक है तो दूसरे स्थान में जन्म का आह्लाद । संसार है और ऊँचे घरानों के अतिरिक्त साधारण जनों में अच्छा की यही रीति है । जापानी यही बात इतनी अच्छी तरह समझा जाता है । दलाल दूसरा वर या दूसरी वधू फ़ौरन अपने शादी के रवाज में व्यक्त करते हैं। वस्त्र पहन बताने को तैयार रहता है। पर तलाक के बाद नौ महीने चुकने पर वधू अपने पिता के गृहदेवों की मूर्तियों के सम्मुख तक विवाह नहीं हो सकता। जाती है और वहाँ अपने पूर्वजों की आत्माओं को सदा वर्तमान रूस के विवाह-संस्कार का हाल श्रीमती रुथ के लिए प्रणाम करती है। जैसे ही वह अपने पिता के घर एपर्सन केनेल ने लिखा है। सोवियट शासन के पहले से बाहर निकलती है, घर बुहारा जाता है और दरवाज़े विवाह गिरजाघरों में हश्रा करते थे। पर जिन लोगों के पर नमक छिड़क दिया जाता है। वधू का जुलूस वर के पास उन विवाहों के लिए पैसा न होता था वे बिना किसी घर पर पहुँचता है और उसके स्वागत के लिए वहाँ बहुत- संस्कार के ही पति-पत्नी के रूप में रहने लगते थे। अब भी से लोग जमा होते हैं। वधू और वर एक दूसरे का अभि- लोग अक्सर यही करते हैं । रूस में कोई भी बच्चा कानून वादन झुककर करते हैं और फिर दोनों एक छोटे से से वर्णसंकर नहीं है । फिर भी रूसी सरकार ऐसे विवाहों को नीचे टेबिल के सामने बैठते हैं । टेबिल पर शराब की दबाने का प्रयत्न कर रही है। विवाह और तलाक को तीन प्यालियाँ रक्खी होती हैं, वर और वधू उन्हीं में उसने इतना आसान बना दिया है कि विवाह संस्कार से एक एक चूंट एक एक करके पीते हैं। पहले वधू एक अब धीरे धीरे लोकप्रिय हो चला है। हर जगह सरकारी चूँट पीती है, फिर वर उसी प्याली से एक चूंट पीता है। दफ्तर मौजूद हैं। उसमें एक टेबिल विवाह दर्ज करने के फिर वधू पीती है और फिर वर पीता है, यहाँ तक कि लिए है और दूसरा तलाक के रजिस्टर के लिए होता है। प्यालियाँ खाली हो जाती हैं। विवाह का संस्कार शराब का श्रीमती केनेल ने श्राइवन श्राइवानोविच और मारूस्या का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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