SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३४ सरस्वती - [भाग ३६ पति था ?” वधू यदि उत्तर नहीं देती है तो मामा वर से घूमकर पूछता है कि "क्या वह अच्छी पत्नी थी ?” यदि दोनों में कोई उत्तर नहीं देता तो वे पति-पत्नी हो जाते हैं और यदि दो में से किसी ने उत्तर में 'नहीं' कहा तो विवाह नहीं होता और वधू का मूल्य लौटा दिया जाता है। वध कोई विवाह के वस्त्र नहीं पहनती है, पर उसके सिंगारदान में किलोलो । नाम की एक जड़ के टुकड़े रहते हैं, जिन्हें खा लेने से बदन से एक खास तरह की सुगन्धि । आती है। __यह तो हुअा अफ्रीका का एक उदाहरण ।। अब उत्तरी ध्रुव के बीले प्रदेशों में रहनेवाली इस्कीमो जाति के विवाह-संस्कार की एक बानगी लीजिए। इन लोगों के सम्बन्ध में पीटर फ्रय - इस्कीमों में विवाह रवेन नामक एक महोदय ने खूब लिखा है। की सिर्फ एक रस्म इस जाति में विवाह-संस्कार में केवल इतना है। वर-वधू भयानक ही होता है कि वर-वधू में पहले घोर द्वन्द्वरूप से आपस में युद्ध होता है और अन्त में वर अपनी वधू को अपने कन्धे पर लादकर बरबस अपनी बर्फ पर फिसल कर चलनेवाली स्लेज़-गाड़ी खड़ा कर देती है और उसे धक्का देकर उस विचित्र लम्बी तक ले जाता है। उस युद्ध का वृत्तान्त श्रीयुत फ़्रय । मूर्ति का उससे सामना कराती है। वर ज़रा झंपकर उस कपड़े रवेन ने बड़ा रोचक दिया है । वे एक बार मायार्क नामक को हटाता है और उसके भीतर अपनी बहन के कन्धों पर ग्राम-मुखिया के उसके बर्फ के बने हुए गोल मकान में बैठी हुई वधू मिलती है । वधू के बालों में रंग-बिरंगी तसवीरें अतिथि थे। दावत हो रही थी। बर्फीले प्रदेशों में पाये होती हैं और उसका नंगा बदन सफ़ेद रँगा होता है । वर जानेवाले मांस का भोजन था और मायार्क की लड़की उसे नीचे उतारता है और दीवार के पास उसे ले जाकर सौनेक की क्रीसुक के साथ शादी थी। क्रीसुक चुपचाप उसका हाथ पकड़ कर बैठता है। उस समय दोस्त और पाकर दावत को देख रहा था । सौनेक ने इतने में ही डकार -रिश्तेदार गन्दा मज़ाक करते हैं। इसके बाद अँधेरा छा ली। इन लोगों में डकार लेकर यह प्रदर्शित किया जाता जाता है। अतिथि अपने अपने घर चले जाते हैं और वर है कि खानेवाला पेट भर खा चुका है। क्रीसुक ने डकार वधू के घर जाता है। रात को वधू, वधू के माता-पिता, सुनकर कहा- “कोई स्त्री मेरी गाड़ी पर चलकर सवार हो वधू के भाई, वधू के मामा और अन्त में वर इस क्रम से जाय तो अच्छा हो।" गाड़ी पर सवार होना ही शादी की एक जगह सोते हैं। सूर्योदय होने पर असली संस्कार रस्म थी। देखने में बड़ी आसान मालूम होती है, पर इस होता है। बाद में मामा लड़की के सामने खड़ा होकर रस्म का अदा करना इतना आसान न था। सौनक ने बड़ी गंभीरता से वधू से पूछता है कि क्या वह अच्छा ज़ोर से हँसते हुए कहा- "मुझे ऐसा मालूम होता है कि www.omaragyanbhandar.com लड़ते हैं।
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy