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संख्या २]
विवाह की कुछ विचित्र प्रथायें
है । दावत में खाना नहीं दिया जाता, शराब ही चलती है। का!कन साहब ने एक दावत में हज़ार गैलन शराब खर्च होते देखी है । दावत के पहले दिन वर के मामा वधू के दाम लेकर और युद्ध के वस्त्र पहनकर वधू के मकान पर जाते हैं। उधर वधू के मामा दरवाज़ा रोककर वर के मामा लोगों का धावा रोकने की निष्फल चेष्टा करते हैं। वर के मामा अाखिर में आँगन में घुस जाते हैं। वधू का पिता उनसे दाम वसूल करता है और फिर उन्हें शराब पिलाता है। संध्याकाल तक विश्राम करने के लिए वे लोग फिर अपने घर लौट जाते हैं । रात को दावत होती है
और सुबह तक वधू जितने पुरुषों के साथ चाहती है, विहार करती है । पहली रात को पति कुछ नहीं बोल सकता चाहे उसे कितनी ही तकलीफ़ हो । सूर्योदय के कुछ घण्टों के बाद विवाहित स्त्रियाँ वधू के पास जाती हैं । उस समय वहाँ क्या होता है, किसी को नहीं मालूम होने पाता । जिन पुरुषों के जुड़वाँ बहनें होती हैं उन्हें वहाँ का हाल बताया जाता है । पर उनसे किसी और को न बताने की कसम ले ली जाती है । तीसरे दिन दोपहर के बाद दावत शुरू होती है। शराब के दौर चलते हैं, नाच होता है और ढोल बजते हैं। वर भी वहाँ पर होता है और अपने मामा के पास बैठता है। करीब चार बजे के कोई दर्जन भर औरतें कुटिया से चिल्लाती हुई निकलती हैं। उनके साथ एक लम्बी और पतलीबेसिर और बेहाथ की-सी सफ़ेद कपड़े से ढंकी हुई मूर्ति होती है । उस मूर्ति के आगे पीछे औरतों की कृतार होती है । और वह मूर्ति वर के सम्मुख अाकर ठहर जाती है । वधू की एक बहन वर को पकड़कर उसके सामने
अफ्रीका के वाको तोङ्गों में दूल्हा, अपनी बहन के कंधे पर बैठी हुई खड़िया मिट्टी से रंगी एक सफेद मूर्ति परसे पर्दा हटाता है। वही मूर्ति उसकी वधू
होती है।