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________________ क़र्ज़ -सम्बन्धी कानून संख्या २] तय यह कि पक्षों के बीच में जो शर्तें तय पाई हैं, काफ़ी श्रन्यायपूर्ण हैं तो अदालत निम्नलिखित बातें कर सकती है (१) उक्त व्यवहार का हिसाब फिर से खोल दे । दोनों पक्षों के जमा-खर्च और लेन-देन का ब्योरा देखे और अगर कर्ज़दार से अत्यधिक ब्याज ले लिया गया है तो उससे उसे मुक्त कर दे । (२) यदि दोनों पक्षों ने अर्थात् महाजन और कर्ज़दार ने मुग्राहिदा करके या दस्तावेज़ लिखकर यह कर लिया है कि पुराना हिसाब-किताब बन्द कर दिया जाय और नया हिसाब नये सिरे से चले, तो भी अदालत पुराने बन्द हिसाब को फिर से खोल सकती है और क़र्ज़दार को अत्यधिक ब्याज से ( अगर उससे अत्यधिक ब्याज लिया गया है) मुक्त कर देगी और अगर अत्यधिक ब्याज की सूरत से कोई रकम हिसाब में डाली जा चुकी है या अदा की जा चुकी है तो उसे वापस करा देगी | (३) अदालत को खत्यार है कि किसी ऋण के सम्बन्ध में किसी दी हुई ज़मानत या किये हुए मुग्राहिदे को पूर्णतया अथवा अंशतः रद कर दे या बदल दे । यदि महाजन ने ज़मानत की वस्तु अपने पास से अलग कर दी है तो अदालत उसे यह हुक्म दे सकती है कि कर्ज़दार की क्षति पूर्ति करे । किन्तु अदालत 'कोई ऐसा मुाहिदा फिर से न खोलेगी जिसका तात्पर्य पहले का हिसाब-किताब बन्द करना और एक नया उत्तरदायित्व स्थापित करना होगा, जो ( मुलाहिदा ) पक्षों ने या उन मनुष्यों ने जिनसे वे अपना अधिकार स्थापित करते हैं ऐसी तिथि में किया होगा जो मामले की तिथि से सत्रह वर्ष से अधिक हो' । इस क़ानून के मुताबिक प्रथम रहन द्वारा सुरक्षित क़र्जों पर अगर १२% प्रति सालाना से ज़्यादा सूद लिया गया है तो वह अत्यधिक ब्याज माना जायगा । लेकिन अगर कोई क़र्ज़ प्रथम रहन द्वारा सुरक्षित नहीं है तो अदालत १२% प्रतिशत से अधिक भी सूद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat १३१ दिला देगी । असुरक्षित क़र्ज़ पर २४% से ज्यादा ब्याज अत्यधिक है । किन्तु ६% अधिक नहीं समझा गया है । सुरक्षित क़र्ज़ पर ७% सूद ज्यादा नहीं है, लेकिन १२% ज्यादा माना गया है । (६) किसानों को ऋण देने का कानून असल में यह क़ानून १८७६ के तक़ावी क़ानून का संशोधित रूप है और सारे प्रान्त में लागू कर दिया गया है । इस क़ानून के अनुसार ज़मीन के “मालिक और दखील" ही गवर्नमेंट से क़र्ज़ पा सकेंगे । अवध के साधारण किसान जिनको ज़मीन में सिर्फ़ आजीवन ही अधिकार है या श्रागरा प्रान्त के साधारण किसान इस कानून के अनुसार गवर्नमेंट से क़र्ज़ नहीं पा सकते । इस कानून के अनुसार गवर्नमेंट ज़मींदारों को जो खेती की ज़मीन के मालिक और दखील हैं, १) कष्ट निवारण के लिए, (२) मौजूदा कर्ज़ अदा करने के लिए, (३) बीज और पशु खरीदने के लिए या ( ४ ) खेती की ज़मीन खरीदने के लिए रुपया उधार देगी । उपर्युक्त कर्ज़ के क़ानून महाजनों की दृष्टिकोण से निम्नलिखित बातों में त्रुटिपूर्ण हैं (१) महाजनों को उनका मताला बहुत दिनों में अर्थात् क़रीब २० बरस में वसूल होता है । (२) सूद कम कर दिया गया है । (३) क़र्ज़दार के पास प्रतिवर्ष हिसाब भेजना पड़ता है । अगर महाजन हिसाब न भेजे तो उसे सूद और अदालती खर्च से हाथ धोना पड़ता है । (४) सूद असल से कभी न बढ़ता । (५) महाजन का क़र्ज़दार की ज़मीन मौजूदा भाव पर नहीं बल्कि सन् १३३८ फ़सली के पहले के भाव पर खरीदनी पड़ती है । (६) क़र्ज़ के अदा न करने पर ज़मींदार को महाजन अ गिरफ़्तार नहीं करा सकता । (७) छोटे किसानों की डिगरियाँ और क़र्ज़ में २५% से ३५% की कमी कर दी गई है। www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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