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________________ संख्या २] क़र्ज़-सम्बन्धी कानून १२५ (५) ३० अप्रेल १६३५ के बाद दी हुई डिगरियों पर तालुक्केदार हैं और न बिलकुल धनहीन किसान । यह कानून __ भी नहीं लगेगा; खेती की ज़मीन की बिक्री को एक नियम में बाँधना चाहता (६) सहयोग समितियों की डिगरियों पर भी नहीं लगेगा; है। कारण यह है कि अनाजके भाव के कम हो जाने से (७) और न १०) से कम की डिगरी पर; ज़मीन की भी कीमत कम हो गई है और यदि वर्तमान (८) जो डिगरियाँ कृषि-व्यवसायियों की सहायता के आर्थिक दशा में जमीन को स्वतन्त्रता-पूर्वक नीलाम पर - कानून के अनुसार कम कर दी गई हैं; चढ़ाने या बेच देने का हक्क कायम रक्खा जाय तो (E) या जो मकान के किराया इत्यादि की हैं, क़र्ज़ की जमीन बड़े सस्ते दामों में बिकेगी और ऋणी कृषक का नहीं है। नुकसान होगा। इसलिए इस कानून-द्वारा खेती की ज़मीन इस कानून से फ़ायदा उठाने का यह तरीका है कि की बिक्री उसी हालत में कानून की दृष्टि से जायज़ समझी जिस किसान के ऊपर डिगरी हो वह ३० अप्रेल १६३६ गई है जब उसके दाम सस्ती के ज़माने के पहले के के पहले उस अदालत में जहाँ से डिगरी निकली है या लगें। इस कानून में नई बात यह पैदा हुई है कि दीवानी जहाँ इजरा डिगरी की कार्रवाई हो रही है, अर्जी दे अदालत की किसी डिगरी की अदायगी के लिए जिस (दफा ६)। शर्त यह है कि वही श्रादमी अर्जी दे सकता समय कोई महाजन किसी खेती की ज़मीन को नीलाम पर है जो ३० अप्रेल ३५ को किसान रहा हो और अर्जी देने चढ़ायेगा तब उसकी कीमत नीलाम की बोली पर नहीं, के दिन भी किसान हो। अर्जी के साथ या अर्जी देने के बल्कि कलक्टर-द्वारा निश्चित होगी। अगर दीवानी अदामहीने भर के अन्दर उक्त डिगरी के मतालबे का चौथाई लत ने इस डिगरी की अदायगी के सिलसिले में कर्जदार अंश जमाकर दे । (७) अदालत इसके बाद यह देखेगी के लिए किस्तें मुकर्रर कर दी हैं तो उस वक्त कलक्टर कि कर्ज़ जिसके बारे में डिगरी दी गई है, सूद की किस नीलाम की कार्रवाई रोक देगा। कलक्टर जमीन की दर से लिया गया था। अगर सूद की दर २४) सालाना कीमत आज-कल के भाव से निश्चित न करेगा, बल्कि से ज़्यादा है तो अदालत डिगरी के मतालबा का केवल मंदी के पहले के और उस समय के भाव के अनुसार ४० फ़ी सदी सैकड़ा दिलायेगी। अगर सूद की दर २४) करेगा जब लगान और मालगुज़ारी में छूट नहीं हुई थी। सालाना या इसके बराबर है तो ५०) फ़ी सैकड़ा । किस्तें कीमत निश्चित करने में कलक्टर की सहायता के लिए ५ से अधिक न होंगी और किस्तों पर कोई सूद न लगेगा। गवर्नमेंट कायदे बनानेवाली है। अगर कर्जदार की तरफ़ से दो किस्तें बराबर रुक जायेंगी ज़मीन की कीमत तय हो जाने पर महाजन के सामने तो डिगरीदार को हक है कि बाकी पूरी रकम के लिए तीन मार्ग खुले रहते हैं। अगर वह यह समझता है कि ज़मीन वह डिगरी इजरा करा दे। की जो कीमत कलक्टर ने तय की है, मुनासिब है और उस ___महाजन को उज्रदारी करने का अख्तियार है। और ज़मीन को उस दाम पर खरीद लेने में उसका घाटा नहीं है इस कानून से ग्रामीण मज़दूर, ग्वाले, अहीर, लोहार, तो वह उस दाम पर ज़मीन को खरीद ले और डिगरी का बढ़ई, मल्लाह, चमार, नाई, जुलाहे श्रादि सभी फ़ायदा हिसाब चुकता कर दे। अगर महाजन यह समझता है कि अभी उठा सकते हैं। ज़मीन की बिक्री ठीक दाम पर नहीं होगी और न वह (२) नीलाम के नियन्त्रण का कानून दाम सन्तोषजनक है जो कलक्टर ने निश्चित किया ___ यह कानून भी अस्थायी है और जिन लोगों पर ऋण- है तो वह ज़मीन का नीलाम १ नवम्बर १९३६ तक मुलप्रस्त रियासत का कानून या इजरा-नियंत्रण का अस्थायी तवी रक्खे । यह कानून १ नवम्बर १६३६ तक ही फ़िलहाल कानून नहीं लगता उनके लिए बनाया गया है । अर्थात् इस लागू किया गया है । उसके बाद सम्भव है, अनुकूल परिकानून से वे लोग फ़ायदा उठायेंगे जो न तो बड़े ज़मींदार या स्थिति आ जाय । अगर यह बात भी महाजन को पसन्द Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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