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________________ १२४ सरस्वती [ भाग ३६ कर्जदार अदालत में दरख्वास्त देकर किसी भी न कर्ज से छुटकारा पाता था। नये कानून में अब यह महाजन से अपने हिसाब की नकल माँग सकता है। कर दिया गया है कि कर्जदार जब चाहे बिला ज़मानती अदालत महाजन से हिसाब तलब करेगी और मतालबे क़र्ज़ की पूरी रकम का या बकाये का चौथाई हिस्सा अदालत को अत्यधिक ब्याजवाले कानून के मुताबिक और 'एग्रीकल- में जमा कर दे और दरख्वास्त देकर इस रकम को महाजन चरिस्ट्स रिलीफ़ एक्ट' की सूद-सम्बन्धी धाराओं के अनुसार के पास अदालत के ज़रिये जमा करा दे । (३८) जिनका ज़िक्र ऊपर किया जा चुका है, तय करेगी। अगर (२) इजरा-नियन्त्रण का अस्थायी कानून अदालत को यह मालूम हुआ कि महाजन को इन कानूनों इजरा के नियंत्रण का अस्थायी कानून जैसा के अनुसार ब्याज में ज़्यादा रकम मिल चुकी है तो उतनी इसके नाम से ज़ाहिर है, अस्थायी है। संयुक्त-प्रान्तीय रकम वह वापस करा देगी। अगर अदालत को यह व्यवस्थापक सभा से मंजूर होकर गवर्नर-जनरल ने निश्चय हो जाय कि महाजन ने किसी कर्ज के मामले में इसे १० अप्रेल १६३५ को स्वीकार किया और ३० बाकायदा हिसाब नहीं रक्खा है तो वह सूद की पूरी रकम अप्रेल १६३५ से यह इस प्रान्त में लागू कर दिया गया या उसका कुछ अंश दिलाये या न दिलाये। है। इस कानून से फायदा उठाकर किसान केवल १२ अनेक ज़िलों के महाजनों में यह कायदा है कि जितनी अाना अदा करके पूरे रुपये की डिगरी से छुटकारा पा रक्रम देते हैं उससे ज़्यादा का प्रोनोट लिखाते हैं या रकम सकता है। देने के पहले ही कमीशन, कटौती, रसूम, लिखाई इत्यादि इसका आशय यह है कि अगर किसी किसान पर के नाम से असल में से कुछ हिस्सा काट कर रुपया देते १००) की डिगरी है तो वह कम रुपया देकर भी उससे हैं। इस कुप्रथा को मिटाने के लिए दफा ३५ (१) में मुक्त हो सकता है । उसे चाहिए कि अदालत में दरख्वास्त दे यह कहा गया है कि अगर कोई महाजन ३० अप्रेल १६३५ और १००) में से २५ जमा करे। अर्जी पाने पर क़र्ज़दार के बाद अपने बही-खाते में वास्तव में दी हुई रक़म से किसान से ज़्यादा से ज़्यादा ५ किस्तों में कुल ५०) अदालत ज्यादा लिख लेगा या रसूम इत्यादि के नाम से कुछ अंश और दिलायेगी और कर्जदार को ७५) में ही १००) की मूलधन से काट लेगा तो उसके ऊपर पहली बार जुर्म डिगरी से छुटकारा मिल जायगा। महाजन का फायदा साबित होने पर १००) तक जुर्माना किया जायगा और यह है कि १००) की डिगरी में २५) उसे फ़ौरन मिल दूसरी दफ़ा ५००) तक । ३० अप्रेल १६३५ के बाद बिना जाते हैं और बाकी ५०) दस दस रुपये की पाँच किस्तों लिखा-पढ़ी के कोई क़र्ज़ जायज़ न समझा जायगा । (३६) में वसूल हो जाते हैं । २५) का निस्सन्देह उसे घाटा ___महाजन के लिए यह आवश्यक है कि वह हर क़र्ज़ रहता है, किन्तु अनाज के भाव के घट जाने की वजह से की लिखा-पढ़ी करे और अलग अलग पर्चे रक्खे। इन यह घाटा घाटा नहीं समझा गया है। प) की एक एक नक़ल ऋणी को भी दे दिया करे । जब यह कानून एक रुपया तक लगान देनेवाले छोटे तक वह पर्चा ऋणी के पास न पहुँचेगा, महाजन सूद का काश्तकारों के लिए बनाया गया है और ३० अप्रेल सन् अधिकारी नहीं समझा जायगा। इस पर्चे पर टिकट ३५ के पहले दी हुई १,०००) से कम की दीवानी की लगाने की भी ज़रूरत नहीं होगी और न नकल पर ही डिगरियों पर ही लगेगा। यह कानून निम्नलिखित आदटिकट की ज़रूरत है। अनाज के रूप में दिया हुअा कर्ज मियों पर लागू नहीं होगा - ऋणी चाहे अनाज के रूप में अदा करे, चाहे पैसे के रूप (१) जो किसान इनकमटैक्स देता है; में (३७)। अभी तक अक्सर महाजन ऋणी किसान से (२) जो १०) से ज़्यादा मालगुज़ारी देता है; अदायगी के अवसर पर पूरे मतालबे से कम रकम लेते (३) जो ठेकेदार या मुरतहिन है; ही नहीं थे, न किसान कभी पूरी रकम दे सकता था और (४) जो किसान नहीं है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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