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________________ संख्या २] कर्ज-सम्बन्धी कानून १२१ कर्ज़ की अदायगी के लिए या रहन रख कर प्राप्त किये हुए न १,०००) का मालगुज़ार जो १२०) सालाना कर्ज की अदायगी के लिए क़िस्त बाँध दें । दस्तावेज़ में या इन्कमटैक्स देता है। किन्तु इस कानून के अनुसार मुबाहिदे में सूद की चाहे जो दर रक्खी गई हो, इन कानूनों हर एक कृषि करनेवाला चाहे वह तालुकदार ही क्यों में निश्चित की हुई दर से किसी भी हालत में अब ज्यादा न हो, इस कानून की निम्नलिखित बातों का फायदा सूद नहीं दिलाया जा सकता। छोटे किसानों के ऊपर उठा सकता है । जैसे वे-- डिगरी की मियाद १२ बरस से घटा कर केवल ४ वर्ष की (१) अदालत से अपने कर्ज़ के मतालबे की किस्तबन्दी कर दी गई है। महाजन इस बात के लिए मजबूर कर करा सकते हैं; दिया गया है कि वह प्रत्येक कर्ज़ का स्पष्ट और सही हिसाब (२) अगले सूद की शरह में कमी करा सकते हैं; रक्खे और इस हिसाब की एक नकल प्रतिवर्ष एक (३) डिगरी हो जाने के बाद भी किस्त बन्दी करा सकते हैं; निश्चित तारीख के अन्दर ऋणी के पास पहुँचा दे। (४) महाजन से हिसाब की नक़ल बाकायदा और बराबर महाजन कर्ज की वसूलयाबी का दावा उसी जिले में कर माँग सकते हैं। सकेगा जहाँ क़र्ज़दार किसान रहता है। किस्तबन्दी–नये कानून के अनुसार कर्जदार के दरइस कानून के अनुसार कृषक शब्द की परिभाषा में ख्वास्त देने पर अदालत का यह कर्तव्य समझा जायगा कि निम्नलिखित श्रेणी के किसान आ जाते हैं । डिगरी देते समय मतालबे की ऐसी किस्तें बाँधे जो क़र्ज़दार (१) छोटे ज़मींदार जो एक हज़ार रुपया तक मालगुज़ारी की हैसियत को देखते हुए मुनासिब कही जा सके । (५) देते हैं। डिगरी देते समय अदालत इस कानून-द्वारा सूद की निश्चित (२) ठेकेदार जिनकी ज़मीन की मालगुज़ारी १,०००) से दर से अधिक सूद न लगा सकेगी। इस कानून में 'किसान'अधिक नहीं है। शब्द की परिभाषा में आनेवाले लोगों के लिए डिगरी की (३) जो १२०) तक सालाना अबवाब देते हैं । मियाद केवल चार बरस की कर दी गई है। (६) अगर (४) जो अवध में मातहतदार अर्थात् मालिक अदना हैं किसी महाजन ने १ जनवरी १६३६ को किसी किसान के और जिसकी मालगुज़ारी १,०००) सालाना से अधिक ऊपर डिगरी करा ली तो वह १ जनवरी सन् १९४० नहीं है। तक तो डिगरी इजरा करा के अपना मतालिबा वसूल कर (५) जो ८० एकड़ तक का माफ़ीदार है । सकता है। यदि इस बीच में मतालबा वसूल नहीं हुआ (६) जो ५०० से अधिक लगान देनेवाले काश्तकार तो आयन्दा वसूल नहीं किया जा सकेगा। नहीं हैं। इस प्रान्त में एक कुप्रथा यह भी थी कि एक जिले के (७) साधारण मजदूर, गड़रिये, ग्वाले, लोहार, बढ़ई, महाजन दूसरे जिले के किसान को बिला ज़मानती कर्ज मछवे, मल्लाह, नाई, चमार, भङ्गी, बँसफोड़, कुम्हार, देते और वसूल या बाकी के लिए अपने जिले में दावा धोबी, जुलाहे आदि भी जो किसी म्युनिसिपेलिटी से करके डिगरी ले लेते थे। कर्जदार किसान महाजन के बाहर रहते हैं, चाहे उनके पास खेत हो या न हो, इस जिले की अदालत तक अपनी आर्थिक कमजोरी के कारण कानून से फायदा उठा सकते हैं। ८० एकड़ का पहुँच ही नहीं सकता था और उसकी गैरहाज़िरी में उसके माफ़ीदार अगर ५०) से अधिक इन्कमटैक्स देता है ऊपर एकतरफ़ा डिगरी हो जाती थी। इस कानून की तो वह इस कानून से फ़ायदा न उठा सकेगा, और दफ़ा 9 के मुताबिक अब ऐसे क़ों का दावा उसी ज़िले की अदालत में होगा जहाँ कर्जदार रहता है। * छोटा किसान वह है जो इस कानून में बयान किये सूद की दर-गवर्नमेंट ने ३० अप्रेल १६३५ के हुए 'किसान' शब्द की परिभाषा में आ जाता है। बाद सूद की दर निम्नलिखित निश्चित की है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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