SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - संख्या २] सुदामापुरी का कलाकार पत्र लिखते हुए श्री अहिवासी ने अपने पत्र में नन्दलाल बाबू के प्रति अपनी श्रद्धा को बहत संदर शब्दों में व्यक्त किया है। वे लिखते हैं-"यदि मुझसे पूछा जाय तो नन्द बाबू के चरणों के पास बैठकर और भी कला-उपासना करूँ, यही मेरे जीवन की अन्तिम इच्छा है।" दुःख का विषय है कि इस सौम्य कलाकार का समुचित समादर अभी तक गुजरात ने तथा भारत के कलाप्रिय सज्जनों ने नहीं किया है। अभी तक यह कलाकार अप्रसिद्धि के आँचल से बाहर नहीं आया है ! गुर्जर-भूमि के सर्वश्रेष्ठ और अभिजात कलाकार श्री रविशंकर रावल ने अपने विख्यात मासिक पत्र 'कुमार' के शतांक में श्री अहिवासी का परिचय देते हुए निम्नलिखित वचन लिखे थे—“बम्बई की सरकारी कलाशाला में भारतीय चित्रकला के शुद्ध स्वरूप में आदर करनेवालों में भाई अहिवासी जी पहले ही हैं। मूल ब्रजवासी होने पर भी ये सौराष्ट्र-भूमि में पालित और परिपोषित हुए हैं। ब्रज की भक्ति और सौराष्ट्र की सादगी को ये अपने जीवन में तथा कला में अनुप्राणित कर रहे हैं । सुकोमल रेखाओं और सुरम्य रंगों के द्वारा इनकी कला-साधना सफल हुई है। गुर्जरभूमि के अभिनव कलाकारों में इनका नाम -अग्रगण्य है।" श्री अहिवासी भारतीय चित्रकला के आशास्पद कलाकार हैं। इन्हें पदक तथा ख्याति प्राप्त करने का मोह नहीं है। अपनी तथा अपने छात्रों को सृजनात्मक शक्ति को विकसित करने की ही एकमात्र अभिकांक्षा इनके हृदय में है। शिष्यों से बहुत-कुछ सीखने को मिलता है, यह बात नम्रभाव से स्वीकार करते हुए इनका मुख आनन्दोल्लास से छा जाता है। [उत्कण्ठिता आधुनिक युग में जब ज्ञानसाधना अनुदिन कष्टसाध्य और व्ययसाध्य बनती जा रही है, अनेक साधनहीन और असहाय विद्यार्थी श्री अहिवासी भाई के जीवन से स्वावलम्बन, सरलता, साधुता और सादगी का पाठ सीख सकते हैं । * 'हनुमान जर्नल' से सङ्कलित । Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy