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________________ संख्या २] सुदामापुरी का कलाकार कुछ ही विद्यार्थी यह जानते होंगे कि इतनी सुन्दर प्रतिभा और व्यक्तित्ववाला यह व्यक्ति सुदामा बनवानवाब पुरी (पोरबन्दर) की ओर से भारत-माता को दिया हुआ एक अमूल्य उपहार है । आज सैंतीस वर्ष का यह नौजवान बम्बई की सरकारी कलाशाला की सबसे अन्तिम कक्षा में अनेक उदीयमान चितेरों को भारतीय चित्रकला की दीक्षा दे रहा है। कलाशाला के विशाल पाठ-भवन में मेज़-कुर्सी लगाकर रोबदार शैली में बैठने का मोह उसको नहीं है। इसी लिए वाटिका के वृक्षों की शीतल छाया में, लकड़ी के बनाये हुए दो मंडपों में, वह अपनी कक्षायें चलाता है। उसकी कक्षा में प्रविष्ट होते ही आप भारतीय ढंग से नीचे लगाई हुई बैठकों पर बैठकर शान्त-भाव से कार्य करते हुए विद्यार्थियों को देखेंगे। अहिवासी जी को अपने ही ढंग से कार्य करना पसंद है और इसी लिए कलाशाला के प्रिन्सिपल ने भी उनको सब प्रकार की सुविधा और स्वाधीनता प्रदान की है। श्री जगन्नाथ अहिवासी के पूर्व-पुरुष तो व्रजवासी थे, परन्तु इनका जन्म हुआ है सुदामापुरी में, [मेरे पिताजी जो आज-कल पोरबंदर कहा जाता है और सौराष्ट्र चित्रकार अहिवासी के पितृदेव का चित्र-यह चित्र भी (काठियावाड़) का एक अच्छा बन्दरगाह है। बम्बई के प्रिन्स ऑफ वेल्स म्यूजियम ने खरीद लिया है। इसी नगरी को महात्मा गांधी की जन्मभूमि होने का भी सौभाग्य प्राप्त है। अहिवासी जी के पिता आर्थिक स्थिति बहुत सामान्य थी। इनके बालपन में श्री मुरलीधर अहिवासी एक अच्छे कीर्तनकार थे, ही माता का स्वर्गवास हो गया। अकेले पिता ने ही और भगवान् के कीर्तनकार ग़रीब होते ही हैं। उनकी इनका पालन-पोषण किया। कृष्ण-भक्ति के कीतनों PARTMERIE [अभिजात कवि और कलाकार को हम सामान्यतया उसके लेखन और अंकन के द्वारा ही देखते हैं, परन्तु उसकी यथार्थ प्रतिभा उसके हाथ के उतने ही कार्य में आबद्ध नहीं होती । वह हमको उसके व्यवहार, दैनिक जीवन तथा उस जीवन की प्रात्यहिक भाषा और भावभंगियों द्वारा ज्ञात होती है। कलाकार की अपनी निसर्गसिद्ध कुलीनता-श्राभिजात्य- का परिचय उसके जीवन और चरित्र के द्वारा ही मिलता है ।] श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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