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________________ सदामापरी का कालाकार श्रीकृष्ण नामकरण—यह चित्र भो विलायत की प्रदर्शनी में गया था। म्बई की सरकारी कलाशाला खींची हैं। अपराह्न-काल की छुट्टी के समय भी जे० जे० स्कूल आफ आर्टस- छात्र-मंडली उस व्यक्ति को घेरे रहती है। कलाशाला की वाटिका में एक व्यक्ति के अध्यापक-वृन्द में मधुर दृष्टिवाले इस व्यक्तिचला आ रहा है। उसके भाई जगन्नाथ अहिवासी-को पहचानने के लिए चेहरे पर अभिमान की रेखा इतनी पहचान पर्याप्त है। तक नहीं है। वह सौम्य है, शान्त है और गंभीर है। उसकी चाल से एक कलाकार की शान्तवृत्ति प्रतिभासित होती है। एकहरे शरीर पर पहने हुए कुर्ते, खादी के साफ़ और गले में लिपटे हुए दुपट्टे से उस व्यक्ति की सरलता निखर रही है, जिसे आप कभी नहीं भूल सकते। विद्यार्थियों का वह प्रिय है, मित्र है; शिक्षक का निर्भय भाव उसकी वाणी में मधुरिमा भर रहा है। भारतीय चित्रकला की सेवा को धुन उसके मानस में समाई हुई है। कलाशाला में प्रविष्ट होनेवाला उसकी ओर बिना आकृष्ट हुए नहीं रह सकता। ऐसी ही भाग्य-रेखायें विधाता ने उसकी हथेली पर लेखक, श्रीयुत शंकरदेव विद्यालंकार ११४ www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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