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________________ ११२ सरस्वती [भाग ३६ हैं । सभ्य कहलाने के अभिप्राय से यदि हमारे साधुओं बेकन ने कहा है कि सौन्दर्य का वह अंश सबसे ने कपड़े छोड़े तो क्या बुरा किया? तब आपने कहा कि उत्तम है जिसे तसवीर न प्रकट कर पाये। इस देश में तो बहुत पहले से साधू नग्न रहते थे। मैंने अब तक सौन्दर्य कविता की दृष्टि से देखा गया कहा, यह इस बात का चिह्न है कि हम पुराने सभ्य हैं। अब यह देखना है कि किस देशवाले किसे सौन्दर्य अस्तु । इस सम्बन्ध में मुझे केवल यही कहना है कि कहते हैं । मलाया-देशवालों की दृष्टि में स्त्रीजातीय यहाँ हिन्दुस्तान में यदि किमी पुस्तक में एक भी सौन्दर्य में यह गुण आवश्यक है कि "माथा एक अश्लील शब्द आजाय, तसवीर तो दूर रही, तो रात्रिवाले चन्द्रमा का-सा हो, भ्रकुटियाँ मुर्ग के नखों फौरन पुस्तक के लिखने और छापनेवाले पर आफत की तरह झुकी हुई हों, कपोल कटे हुए आम के आ जाती है, पर जो ऐसी पुस्तकें बाहर से आती हैं टुकड़ों के से हों, नासिका विकसित चमेली की-सी वे हाथों हाथ बिकती हैं और कोई रोक-टोक नहीं कली हो, गर्दन पतली हो, कमर फूल के डंठल के होती है। समान हो, सिर अण्डाकृति हो, आँखें शुक्र-ग्रह की ___ एक दूसरे लेखक के भी विचार देखिए। उस तरह चमकती हों और अधर छिद्रित दाडिम के-से लेखक का अधिकांश समय सौन्दर्य के निरीक्षण हों।" जापान के पुराने किस्सों में एक षोडश वर्षीया और उसका विवेचन करने में व्यय हुआ है। उसने युवती के सौन्दर्य का इस प्रकार वर्णन किया गया "सौन्दर्य सुख की प्रतिज्ञा है ।" यह एक वाक्य उद्धृत है-“न बहुत मोटी, न वहुत दुबली, न बहुत लंबी किया है। एक दूसरे का कहना है कि “सौन्दर्य और न बहुत ठमकी, चेहरा खरबूजे के बीज के स्वास्थ्यसूचक है।" यह अभी तक निश्चित नहीं हो समान, रङ्ग गोरा, आँखें संकीर्ण और चमकती हुई पाया है और न निश्चित हो पाने की आशा है कि (हिन्दुस्तान में नेत्रों की उपमा कमल से दी जाती है), सौन्दर्य क्या है । एक उर्दू कवि ने कहा है दाँत छोटे और बराबर (हिन्दुस्तान में दाँत अनार के "किसी ने जाके मजनू से दाने के-से कहलाते हैं-दूसरी उपमा मोतियों की है) ___ यह पूछा था कि ऐ भाई, सुन्दर मुख, खूबसूरत लाल अधर, भौंहें बड़ी और "हसीं इतनी नहीं लैला पतली, बड़े और काले बाल । पुराने जमाने में जापानकि जिसका तू है शैदाई, वाले सफेद चेहरा, लम्बी गर्दन, संकीण वक्षःस्थल बहा कर अश्क (आँसू) आँखों से और छोटे हाथ और छोटे ही पैर पसन्द करते लगा कहने वह सौदाई, थे । एक का कहना है कि सौन्दर्य की इन तीन चीजों तमीजे खूब (अच्छे) व जिश्त (बुरे) से पहचान होती है-(१) सुकुमारता, (२) पीलापन ऐ आशना कब इश्क ने पाई, और (३) तनुता । सुकुमारता और तनुता की क़द्र मुहब्बत में सभी यकसाँ हैं इस देश में भी है, पर पीलापन इस देश में रोगग्रस्त जिससे जिसकी बन आई।" होने का सूचक है। सिंहल-देश में ऐसे लम्बे इसी ढङ्ग का एक हिन्दी में भी दोहा है- बालों की बड़ी क़द्र है जो घुटनों तक हों (अपने देश "रहिमन मन महराज के दृग से नहीं दिवान, में उनसे भी बड़े बालों की तारीफ़ है-"बढ़ि जाहि देखि रीझे नयन मन तेहि हाथ बिकान ।” केश छवान (एंडिया) सो लागे अरुभन ।” पतली एक और भी उर्दू का शेर है कमर की भी वहाँ प्रशंसा है (हमारे यहाँ केहरि"देखा जो हुस्न यार तबीयत बदल गई, कटि कहते ही हैं)। कामसूत्र में वात्सायन ने पद्मिनी आँखों का था क़सूर छुरी दिल पे चल गई।" की प्रशंसा की है-"मुख पूर्णचन्द्र का-सा हो, शरीर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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