________________
संख्या २]
जापान के रास्ते में
- १०५
रही थी । हमारे पास घंटा भर का समय था । साथी लोग ओर से या पहले से नियुक्त गवर्नर मनमानी करने लगे। चित्र देखने गये, और हम जेटी पर जा अखबार पढ़ने उनके लिए चीनी प्रजातन्त्र का कोई अस्तित्व न था। लगे । मोटर-नौका के आने में अभी कुछ देर थी। प्रजा का रक्त चूस-चूस कर अपनी थैली भरना तथा
राष्ट्रीय सरकार के प्रधान जनरल चाङ्-कै-शक ने पल्टनों का संग्रह करके आपस में लड़ते रहना, बस साम्यवादियों के प्रति जहाद बोल रक्खी है। आज-कल इतना ही काम था । जहाँ किसी ने अपने भाग्य का पल्टा
को सबसे अधिक सामग्री उसी से मिल रही है। खाते देखा कि वह भाग कर शाङ-घाई चला पाया. १६४४ ईसवी में (अर्थात् अकबर के मरने से ३६ जहाँ घर और बैङ्क में रुपये का वह पहले से ही प्रबन्ध वर्ष बाद शाहजहाँ के समकाल में) चीन में छिन या मंचू- किये रहता है। डाक्टर सुन-यात्-सेन चीनी प्रजातन्त्र के वंश का राज्य स्थापित हुश्रा । तब से १६११ ईसवी तक जन्मदाता कहे जाते हैं । लेकिन प्रजातन्त्र स्थापित होने पर मंचू-वंश का शासन चीन पर रहा । योरपियों से बार-बार उसकी बागडोर यु-अान शिकाई के हाथ में चली गई। युहारने तथा नई शिक्षा के प्रचार से चीन के नवयुवकों प्रान्-शिकाई ने महायुद्ध के समय अपने का सम्राट भी में नई इच्छा और नई लहर पैदा हुई। अन्त में १६११ उद्घोषित किया; किन्तु वह कु: ही महीनों में मर गया । ईसवी में मंचूवंश का अन्त करके चीन में प्रजातन्त्र की उस समय सुन्-यात्-सेन ने दक्षिण में कान्टन में अपना स्थापना की गई। किन्तु साधारण जनता में न वैसा पैर मज़बूत किया था। लड़ाई के बाद और गृह-युद्ध के खयाल था और न उतनी जाग्रति । अब प्रजातन्त्र की समाप्त हो जाने पर सुन्-यात्-सेन् और रूसी सोवियट
सरकार की मैत्री स्थापित हो गई। रूसी विशेषज्ञ दिल * चीन का ऐतिहासिक राजवंश इस प्रकार है- खोल कर चीन को मदद देने लगे और कुछ ही समय में चिन
२५५ ई० पू० - २०६ ई० पू० सुन्-यात्-सेन् के पक्ष की कु-मिङ्-ताङ् की सेना उत्तर हान (पश्चिमी) २०६ ई० पू० -- २५ ई. की ओर बढ़ने लगी। चाङ्-कै-शक् डाक्टर सुन्-यात्-सेन् हान (पूर्वी
२५ ई०. २२१ ई० के साले हैं । इस रिश्ते ने उन्हें आगे बढ़ने में बहुत मदद तीन क्षुद्र राज्य
२२१ ई०-२६५ ई० दी। उन्होंने रूसी विशेषज्ञों से भी बहुत सीखा। फलतः चिन (पश्चिमी)
२६५ ई० - ३१७ ई० सुन्-यात्-सेन् के मरने के बाद चाङ्-कै-शक ही कु-मिङचिन (पूर्वी)
३१७ ई०-४२० ई० ताङ के प्रभावशाली सेनापति हो गये। जब तक उन्हें उत्तर-दक्षिण-विभाग ४२० ई० - ५८६ ” ज़रूरत थी, उन्होंने कुछ नहीं किया। किन्तु जब देखा
५८६ ई०-६१८ ” कि कू-मिङ्-ताङ्-दल में साम्यवादियों का प्रभाव बढ़ थाङ्
६१८ ई०-६०७ " रहा है तब उनके खिलाफ़ जेहाद बोल दी। अकेले पाँच वंश
६०७ ई० . ६६० ” कान्टन में ही बीस हज़ार साम्यवादी बड़ी निर्दयता ल्याउ
६०७ ई०-११२५ " से मारे गये। यदि किसी तरुण के पास साम्यवादी ल्याउ पश्चिमी) ११५२ ई० . ११६८" साहित्य का एक पन्ना भी निकल पाता था तो गोली से उड़ा चिन (काँचन तातार) १११५ ई० -१२६० " देने के लिए वही प्रमाण काफी समझा जाता था। यह बात
६६० ई०-११२७ " १६२७ की है । उस समय कितने ही साम्यवादी चीन के सुङ (दक्षिणी) ११२७ ई०-१२८० " भीतरी भाग क्याङ-सी आदि में भाग गये । वहाँ उन्होंने युअान् (मंगोल) १२८० ई० १३६८ ” धीरे धीरे अपना प्रभाव बढ़ाकर 'चीनी' सोवियट सरकार की मिङ
१३६८ ई० . १६४४ " स्थापना की। चाङ-कै-शक उनका जानी दुश्मन था । चा ङ छिन् (मंचू) १६४४ ई० . १६११ ” ने दो बार उन पर हमला किया, किन्तु सफलता नहीं
फा. २ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com
सुई
सुङ