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सरस्वती
[भाग ३६
कहेंगे। यहाँ इतना ही कहना है कि यद्यपि देखने रंग-बिरंगी सजावट थी। शाङ्-धाई के चीनी लोगों में में वे मोटे-ताजे मालूम होते थे, किन्तु कपड़े के पहनावे बिगड़े हुए पाश्चात्य फ़ैशन का खूब प्रचार है, विशेषकर और दौड़ने से तो महादेव बाबा की बरातियों से कुछ ही मध्यम श्रेणी के लोगों में। अधिकांश स्त्रियाँ बाल कटाये आगे मालूम होते थे।
मिलेंगी। मक्के के भूये की भाँति रूखे एक एक बीता ___ थोड़ा ही आगे जाने पर खेत आ गये। हरे गेहूँ लम्बे उनके बाल गर्दन पर दूर तक बिखरे हुए थे, जो लहरा रहे थे। होला खाने के लिए मन हो आया था। बहुत ही बीभत्स-सा मालूम होते थे। वे टोपी नहीं पहनती यहाँ जहाँ-तहाँ जापानी तोपों का लंकाकांड दिखलाई हैं, नहीं तो शायद वे इतना बीभत्स न मालूम पड़तीं। पड़ रहा था। किसी मकान की आधी दीवार खड़ी है, ऊपर से पैर तक लम्बा बिना कमरबन्द का उनका जातीय किसी के जंगले और दरवाज़े टूट-फूट गये हैं, किसी के अँगरखा रही-सही कमी को पूरी कर देता है। यदि किसी सामने से देखने से बहुत कम नुकसान मालूम होता है, ने बिना मोज़े का हाफ़पेंट पहन लिया तो फिर पूछना ही लेकिन छत गिर गई है। ध्वस्त मकानों में कहीं-कहीं क्या ? और ऐसों की संख्या यहाँ काफ़ी है (यद्यपि हाङजली लकड़ियों का कोना भी दीवार में लगा दिखाई दे काङ् जैसी नहीं, क्योंकि शाङ्-घाई में अभी काफ़ी जाड़ा रहा था। आगे चीन की राष्ट्रीय सरकार की कुछ इमारतें थीं। है) इसके विरुद्ध प्राप शाङ्-धाई की जापानी स्त्रियों दूर हरे खपरैल की चीनी ढङ्ग की एक विशाल इमारत को देखिए (यहाँ १८,८०० जापानी बसते हैं)। उनका थी। हमारी टैक्सी वहाँ पहुँची। छत और सामने की सुन्दर कमर-पट्टी से बँधा कियोनो और केशों की सजा दीवारें दोनों ही चीनी शिल्प-कला के अाधुनिक नमूने बिलकुल ही दूसरे तरह की है। हैं। कितने ही पुलिस और फ़ौजी सिपाही दिखाई पड़े। पीछे हम 'फ्रेंच कन्सेशन' में गये। सब पास ही दर्शकों को भीतर जाने की इजाज़त न थी। होनी भी पास हैं । फ्रेंच और इन्टर्नेश्नल-कन्सेशनों में कोई फ़र्क नहीं चाहिए। कहीं श्राफ़िस भी अजायबघर होते हैं! नहीं है। एक फ़ोटो लिया और फिर लौट पड़े। इस उजड़ी भूमि में १२ बजे से कुछ पहले ही हम हिन्दुस्तानी भोजनाराष्ट्रीय सरकार सड़कें बनवा रही है । एक जगह नये शहर लय में पहुँच गये। पंजाब की प्यारी माह (उड़द) की की स्कीम का नक्शा भी देखा। बड़ा भारी आयोजन दाल, एक तरकारी, चपाती, चावल और मांस तैयार था। है । अब फिर हमें जले और टूटे मकान मिलने लगे। भोजन हुआ । एक गिलास दही की लस्सी पीने को मिली। बहुत-से मकानों को लोगों ने फिर से बनवा लिया है भोजनालय के बारे में पता लगा कि इसे कई आदमी और बहुत-से. वैसे ही खड़े हैं। एक सीमेंट की दीवार- मिल कर चलाते थे । आपस में झगड़ा हो गया। मामला वाले ऊँचे मकान को सूना खड़ा देखा। मालूम होता है, अदालत में जाना चाहता था । परन्तु हाल में हिन्दुस्तानियों मकान कुछ ही समय पूर्व बन कर तैयार हुश्रा था । गोलों के एक मुकद्दमें में जज ने बड़ी कड़ी टिप्पणी की थी, के जगह जगह पर निशान थे। छत जहाँ-तहाँ टूट गई इसलिए आपस में समझौता करने के लिए हिसाब-किताब थी । मालूम होता है, मालिक के पास फिर से बनाने के तैयार हो रहा है। झगड़े से पहले, कहते हैं, डेढ़ लिए रुपया नहीं रह गया।
सौ डालर तक की रोज़ बिक्री हो जाया करती थी।
सौ साल . __फिर घनी बस्ती मिली, 'इन्टर्नेश्नल-कन्सेशन' में हिन्दुस्तानियों की संख्या शाङ्-धाई में दो हज़ार से आये । यहाँ सिक्ख पुलिसमैन मिले । मोटरों और राह- ज्यादा है। गीरों के चलने की व्यवस्था करने के लिए यहाँ यंत्र- छः श्रादमी के भोजन पर साढ़े चार डालर (५ रुपये संचालित हरी, लाल रोशनियाँ थीं । चीनी' मुहल्ले में से अधिक) खर्च हुए । फिर हम लोग जहाज़-घाट की ओर हाङ्-काङ की भाँति विज्ञापनों और साइनबोर्डो की चले । चीनी चित्रों की प्राज-कल यहाँ एक प्रदर्शिनी हो
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