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________________ सम्पादकाय नाट उसक मलव के कोयटा का लोकसंहार हुई सम्पत्ति का उद्धार करके उन्हें सौंप देने का भार हम जा मई को कोयटा में भूकम्प ने लोग अपने ऊपर लें । प्रसन्नता की बात है, अपने इस कर्तव्य -SI सर्वनाश का जो भयंकर दृश्य का पालन करने में क्या सरकार ने और क्या जनता ने उपस्थित किया है उस सम्बन्ध ज़रा भी अवहेलना नहीं की और शुरू से ही बराबर अभी में हम इसी अंक में अन्यत्र तक तत्परता से भूकम्प पीड़ितों का बिना किसी भेदभाव के दो लेख छाप रहे हैं । उनसे सेवा-कार्य किया जा रहा है। आशा है, सभी लोग पाठकों को इस प्रलयंकर भूकम्प पीड़ित भाइयों की सहायता करके अपने कर्तव्य घटना का यत्किंचित् परिचय का पालन करेंगे। अवश्य प्राप्त हो जायगा । एक क्षण में किस तरह एक विशाल जनाकीर्ण नगर ढह गया और उसके मलवे के सङ्घ-शासन-विधान नीचे बाबाल-वृद्ध-वनिता-सारे निवासी दब मरे, इसकी नये शासन-सुधारों का जो बिल हाउस अाफ़ कामंस करुणकथा बताने को यद्यपि दस-पाँच हज़ार श्रादमी में पेश था उसके तीन वाचन हो गये और वहाँ से वह बच गये हैं, तो भी वे उसका शतांश भी नहीं बता सकते। कुछ परिवर्तन के साथ पास हो गया। अब वह हाउस इस दुर्घटना के स्मरणमात्र से रोएँ खड़े हो जाते हैं। अाफ़ लार्डस में पेश है, जहाँ से, अाशा है, वह अपने यह भूकम्प १५० मील लम्बे तथा २० मील चौड़े भूभाग वर्तमान रूप में जैसा का तैसा ही पास हो जायगा। उसके में आया था, जिसके परिणाम स्वरूप कोयटा तथा मातुंग बाद उस पर सम्राट के हस्ताक्षर होंगे और तब उसे कानून नाम के दो शहर तथा उनके आस-पास के १०० गाँव का रूप प्राप्त हो जायगा । इस प्रकार इस वर्ष की समाप्ति नष्ट हो गये हैं। और सम्पत्ति के विनाश का अन्दाज़ के पहले ही इस कानून के सारे संस्कार पूरे हो जायँगे ५० करोड़ रुपये से ऊपर लगाया जाता है। इसी प्रकार और भारत में अगले वर्ष से प्रान्तीय 'स्वराज्य' का यह भी कहा जाता है कि एक लाख के लगभग जाने गई प्रवर्तन हो जायगा। हैं। इसमें सन्देह नहीं, कोयटा तथा मातुंग ये दोनों हाउस अाफ़ कामंस में इस बिल के विरुद्ध मिस्टर विशाल नगर अाज मलवे के ढेर हो गये हैं, जिसके साथ चर्चिल तथा उनके दल के लोगों ने बड़ा वाद-विवाद वहाँ के हज़ारों निवासी तथा उनकी करोड़ों की सम्पत्ति किया, किन्तु भारतमंत्री सर सेमुअल होर के आगे उनकी भी मिट्टी में मिल गई है। इस अचिन्त्य त्रासदायक एक न चली और सरकार ने अपने बहुमत से उसे तीनों दुर्घटना की यादकर इटली के प्राचीन पंपिाई नगर का बार हाउस अाफ़ कामंस से पास करवा लिया। केवल चित्र सामने आ जाता है जिसे ज्वालामुखी के लावे ने भारत के देशी नरेश ही उसमें अपने पक्ष में यत्किंचित् बात की बात में उदरस्थ कर लिया था। इस समय अाव- परिवर्तन करवा लेने में सफल मनोरथ हुए हैं। पर श्यकता इस बात की है कि जो अल्पसंख्यक लोग इस अँगरेज़ी भारत की भिन्न भिन्न संस्थानों में से किसी एक मरणान्तक विपत्ति से बच निकले हैं और जिनमें आधे के की भी नहीं सुनी गई । यहाँ तक उन मुसलमान नेताओं लगभग बुरी तरह से घायल हो गये हैं उनकी जान बचाने ने भी असन्तोष प्रकट किया है जिनको नये शासन-सुधारों का, साथ ही सभी बचे हुओं की मलवे के नीचे दबी पड़ी में अन्य जातियों की अपेक्षा विशेष सुविधायें दी गई हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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