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________________ ३४] संक्षिप्त जैन इतिहास। RAININN N N N. ................................... .......... राजमल्लके गौरवशाली राज्यमें उसके भाई बुठुगका गहरह हाथ था। बुटुग युवराज था मौर कोनाडु युवराज बुटुग। तथा पोन्नाडु पर शासन करता था। उसने भनेक युद्धोंमें अपना शौर्य प्रदर्शित किया था। पल्लवोंको उसने परास्त किया था। चोलराज अजेय राजराजको उसने हराया था। गङ्गोंके हाथियोंको कोङ्देशवासी बांधने नहीं देते थे। बुटुगने उन्हें पांचवार इस घीढताका मजठ चखाया और अगणित घोड़ोंको पकड़ लिया ! हिरियर और मुरूरके युद्धोंमें उन्होंने नोलम्बराज महेन्द्रको परास्त किया। चालुक्य गुणक विजयादित्य तृतीयसे भी वह दीर्घकाल तक युद्ध करता रहा था। रेमिय और गुन्गुरके युद्धोंमें बुटुग और राजमलने अपने भुजविक्रमका अपूर्व कौशल दिखाकर विजयादित्यको परास्त किया था। इस प्रकार दोनों भाइयों के शौर्यने गङ्ग राज्यके प्रतापको सजीक बना दिया था । बुटुगका मपर नाम गुणरत्तरंग था। पाण्ड्यराज श्रीमारने उसे अवश्य परास्त किया था, परन्तु इस पराजयका बदला लेकर ही वीर बुटुगा हृदय शान्त हुमा था। बुटुगकी जीवनलीका उसके भाई के राज्यकारमें ही समाप्त होगई थी और उसका पुत्र ऐरेगंग युवराजपदपा भासीन हुआ था। उधर राजमल्लकी भी वृद्धावस्था थी-इस लिये उन्होंने अपने जीवन में ही (सन् ८८६ ई०) एरेयप्पको राजा घोषित कर दिया था। राज्यमारको हकका और व्यवस्थित रखनेके लिए राजमल्लने कोङ्गलनाडु ८०००, नुगुनाडु और नवले मादि प्रान्तोंका शासनाधिकार ऐरेयप्पके माधीन करदिया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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