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________________ ५०] संक्षिप्त जैन इतिहास । और पाण्ड्य देशों पर धावा बोला था। चालुक्योंसे बदला चुकानेके लिये कोङ्देशके राजा नन्दिवर्मन्ने पाण्डयों और गङ्गोंसे संधि कर की और तीनोंने मिलकर चालुक्यों पर आक्रमण किया। सन् ७५७ ई० को वेम्बै (Vembai) के युद्ध चालुक्यराज कीर्तिवर्मन् द्वितीयकी सेना बुरीतरह परास्त हुई। इस युद्धका चालुक्यों पर स्थायी असर पड़ा और वह जल्दी पनप न पाये । चालुक्योंसे निवटकर कोङ्गु, पांड्य मादि राजाओंको अपना २ स्वार्थ साधनेकी धुन समाई । इसी बीचमें पल्लवोंने पाण्डयोंसे युद्ध छेड़ दिया और उघर राठौर भी पल्लवोंसे भा जूझे। नन्दिवर्मन ने गणराज्य पर आक्रमण कर दिया; किन्तु श्रीपुरुषपर इन भाक्रमणोंका कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा । वह अपनी स्थितिको सुदृढ़ बनाये रहा । उसका सबसे बड़ा युद्ध पल्लवोंसे हुआ था। श्रीपुरुषका पुत्र सियगल्ल केसुमन्नुनाडुका शासक और सेनापति था। बिर्डी नामक स्थान पर हुये युद्ध में सियगल्लने पल्लवोंको बुरी तरह हराया था । श्रीपुरुषने वीर कदुवेट्टि (पल्लव) को तलवारके घाट उतारकर उसका विरुद पेरमनडी' धारण किया था । उपरांत यह विरुद गङ्ग राजाओं की अपनी खास चीज़ होगया था। इस विजयसे श्रीपुरुषकी प्रसिद्ध विशेष हुई थी और उसे 'भीमकोप' उपाधि मिली थी। वह महान् वीर था। विनयलक्ष्मी उसकी चेरी होम्ही थी। श्री पुरुषको अपने राज्यकालके अन्तिम समयमें राठौर १-गंग०१० ५१-५५. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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