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________________ गङ्ग-राजवंश | [ ४९ उल्टे शिवमारके द्वारा वह परास्त किये गये और उन्हें राजकर देनेके लिये वह बाध्य हुये । हाँ, चालुक्यराज विनयादित्य की सेना ने गङ्गको परास्त कर दिया था । चालुक्यराजा गङ्गोंको अपना फरद समझते थे, परन्तु गङ्गोंने कभी उनको अपना सम्राट् स्वीकार नहीं किया । चालुक्य उन्हें हमेशा बड़े सम्मान और मादरकी दृष्टिसे देखते थे । गङ्गों का उल्लेख उन्होंने 'मौल' नामसे किया है । शिवमारका दूसरा नाम अवनी महेन्द्र था । उसे 'नवकाम' और 'शिष्टप्रिय' भी कहते थे । उसका पुत्र एरगङ्ग था, परन्तु वह उसके जीवन में ही स्वर्गवासी होगया था। दो पल्लव राजकुमार शिवमारके संरक्षण में रहते थे | इ शिवमारके पश्चात् उसका पोता श्रीपुरुष ग्ङ्ग राजसिंहासन पर श्रीपुरुष | सन् ७२६ ई० के लगभग आसीन हुआ । गङ्ग राजाओंमें वह सर्वश्रेष्ठ राजा था । उसके शासनकाल में गङ्ग राष्ट्रकी ऐसी श्रीवृद्धि हुई कि वह 'श्री राज्य' के नामसे प्रसिद्ध होगया । युवराज अवस्था में श्रीपुरुषने मुत्तग्स नामसे कैरकुंड ५००, एलेनगरनाड ७०, अचन्यनाड ३०० और पो. कुंड १२ ( कोकर जिला ) प्रदेशों पर राज्य किया था | उसने बाणवंशी राजाओंसे लड़ाइयां लड़ी थीं और उन्हें अपना लोहा मानने के लिये बाध्य किया था । उसके शासनकालमेंट्ट (राठौर) राजा शक्तिशाली होरहे थे और उन्होंने गङ्गराजा पर भी आक्रमण किये थे । उघर चलुक्योंने भी प्ल १- गङ्ग० १० ५०. २ - कु० पृ० ३७. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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