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________________ गाजवंश। [४७ उन्होंने अपनी सम्पत्तिका सदुपयोग किया था। वह परास्त हुये शत्रुका भी सम्मान करते थे। इसीलिये वह सबको प्यारे थे । दक्षिण भारतके राजाओंने वह महान् थे।' मुष्कर (मोकर) दुर्विनीतका पुत्र था- उनके बाद वही राज्या धिकारी हुआ । उसे कान्तिविनीत भी कहते मुष्कर। थे। उसके दो माई भौर थे, परन्तु वह उससे छोटे थे। उसका विवाह सिंधुराजकी कन्यासे हुमा था । वेलारीके निकट उसने 'मोक्कर वस्ती' नामक जैन मन्दिर बनवाया था, जिससे प्रगट है कि गङ्गराज उस दिशामें बढ़ गया था । मुष्करके समयसे गङ्गराजाका राजधर्म होनेका गौरव पुनः जैनधर्मको प्राप्त हुआ था। सिन्धु राजकुमारीकी कोखसे जन्मे मुष्करके पुत्र श्री विक्रम उनके पश्चात् राज्याविकारी हुये; परन्तु श्री विक्रम। उनके विषयमें कुछ विशेष हाल विदित नहीं होता । हां, यह स्पष्ट है कि अपने पिताकी मांति वह भी एक विद्वान थे। राननीतिका मध्ययन उनका उल्लेखनीव विषय था । वैसे विद्याकी चौदह शाखाओंमें वह निपुण कहे गए हैं। उनके दो पुत्र मूविक्रम और शिवमार नामक थे, जो उनके पश्चात क्रमशः राज्याधिकारी हुये थे। १-गङ्ग, पृ० ४३-४५. २-०, पृ० ४५६ मकु०, पृ० ३७. उौकु. पृ. ३७ मा पृ.४१. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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