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HE दो शब्द । BAR "क्षिप्त जैन इतिहास" के तृतीय भागका यह दूसग खण्ड पाठ. कोको भेंट करते हुये मुझे हर्ष है। इस खण्डमें दक्षिण भारतके कतिपय प्रमुख राजवंशो, जैसे पल्लव, कादम्ब, गंग अदिका परिचयात्मक विवरण दिया गया है। साथ ही उन वंशोके गजाओके शापनकाटमें बैनधर्मका क्या अस्तित्व रहा था, यह भी पाठक इपमें अवलोकन करेंगे । मेरे खयानसे यह रचना जैन-साहित्य ही नहीं, बल्कि भरतीय हिन्दीसाहित्यमें अपने ढंगकी पहली रचना है और इसमें ही इसका महत्व है। मुझे जहांतक ज्ञात है, हिन्दी में शायद ही कोई ऐसा ऐतिहासिक प्रन्थ है, जिसमें दक्षिण भारत के राजवंशो विशद वर्णन मिलता हो। इस इतिहासके अगले खण्ड में पाठकगण दक्षिणके अन्य प्रमुख राजवंशोचालुक्य, राष्ट्रकूट, होयसळ इत्यादिका परिचय पढ़ेंगे। और इस प्रकार दोनो बण्डोके पूर्णत: प्रकट होनेपर दक्षिण भारतका एक प्रामाणिक इतिहास हिन्दीमें प्राप्त होसकेगा, जिससे हिनीके इतिहास-शासकी एक हद तक सासी पूर्ति होगी। यदि विद्वानोको यह रचना रुचिकर और प्राय हुई, तो मैं अपने परिश्रमको सफल हुभा समझूगा ।
अन्तमें मैं उन महानुभावोका आभार स्वीकार करना भी अपना कर्तव्य समझता हूं जिनसे मुझे इस इतिहास-निर्माणमें किसी न किसी रूपमें सहायता मिली है। विशेषतः मैं उन प्रन्य-कर्ताओ उपकृत है जिनके प्रन्योसे मैंने सहायता ली है। उनका नामोल्लेख भटग एक संकेतसूचीमें कर दिया है। उनके साथ ही में श्री. के. भुनबली शास्त्री, अध्यक्ष जनसियांत भवन आरा ए अध्यक्ष, इम्पीरियल लायब्रेरी कल. कत्ताका भी भामारी हूं जिन्होंने अपने भवनोसे आवश्यक प्रन्य उवार देकर मेरे कार्यको सुगम बना दिया । अन्तत: सेठ मूलचन्द किसनदारबी कापरियाको धन्यवाद दिये विना भी मैं रह नहीं सकता, क्योकि उनकी कपाका परिणाम है कि यह प्रन्य इतना जल्दी प्रचारमें भारहा है। अलीगंज।
विनीतता० ३-१०-१८
कामतामसाद जैन।
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