SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पल्लब और कादम्ब राजवंश । [ १३ सारी गुदा कमलों से अलंकृत है। सामने के दोनों खम्भको आपस में गुँथी हुई कमलनालोंकी बेलोंसे सजाया गया है । स्वम्भर नर्तकि योंके चित्र हैं। बरामदेकी छतके मध्यभागमें एक पुष्करजीका चित्र है। हरे कमलपत्रोंकी भूमिपर लाल कमल खिलाये गये हैं; जलमें मछलियां, हंस, जलमुर्गाबी, हाथी, भैंसे आदि जल विहार कर रहे हैं। चित्रके दाहिनी तरफ तीन मनुष्य कृतियां हैं, जिनकी आकृतियां आकर्षक और सुन्दर हैं। दो मनुष्य इकट्ठे जल विहार करते दिखाये हैं; इनका रंग लाल दिया है; तीसरेका रंग सुनहला है और वह इनसे अलग है। इसकी भाकृति बड़ी मनोमोहक और भव्य है । सौधर्मेन्द्र तीर्थंकर भगवानके केवली होनेपर उनको उपदेश देने के लिये ' समवशरण' नामक एक स्वर्गीय मण्डप रचा था | उसके चारों तरफ सात भूमियां होती हैं, जिनमें से गुजरकर ही कोई व्यक्ति उस प्रासादमें तीर्थंकरका उपदेश सुनने पहुंच सकता है । इनमें से दूसरी भूमिका नाम • स्वातिका' है । दिगम्बर जैन मूर्ति-शास्त्र ' श्रीपुराण' नामक ग्रन्थके अनुसार यह स्वातिका भूमि तालाब होती है; जहां पहुंचकर भव्योंको स्नान और जलविहार करने को कहा जाता है । उक्त चित्र इसी खातिका भूमिका है । अन्य बचे हुए चित्रोंमें दो नर्तकियोंके चित्र हैं जो अन्दर घुसते ही सामने के दो स्वम्भों पर बने हैं। एककी दाहिनी भुजा गज हस्त और दूसरीकी दण्ड- हस्त मुद्रा में फैली है। इन चित्रोंमें कलाकारने मानों गहनोंसे लदी पतली कमर और चौड़े नितंबोंवाली, चीते की तरह प्रचण्ड शक्तिवाली और भव्य, स्वर्गीय अप्सराओंोंके और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy