SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३६] संक्षिप्त जैन इतिहास । KAMAN A NEEKSNRAININ ................... .........................." एक विशाल और भव्य जिनालय निर्मापित कराया था । श्रीपुरुषने गुडलरमें श्री कंदच्छी द्वारा निर्मापित जिनालयको दान दिया था। इन जिनालयोंकी अपनी विशेषतायें इस प्रकार थीं। इनके गर्भगृहमें प्रकाश बीच के बड़े कमरों में से माता था। तीर्थङ्कगेकी प्रतिमायें प्रायः सदा ही चौकोन कोठरियोंमें विगजमान की जाती थीं । वेदिकाके द्वार पर भी जिनमूर्ति होती थी; परन्तु जिनालयके बाहरी द्वर ( Outer door ) पर गजलक्ष्मीकी ही मूर्ति होती थी। मंदिरकी दीवालों और छतोर सुन्दर तक्षण ( नकाशी) का काम खुदा होता था। उनमें मुख्यतः जिनेन्द्रकी जीवन घटनायें उत्कीर्ण की जाती थीं। बड़े मंदिरोंका बाहरी परकोटा भी होता था, जिसमें छोटी- छोटी कोठरियां जिनमूर्तियां विराजमान करनेके लिए बनी होती थीं। कोई कोई मंदिर दोमंजिल भी होते थे। वरंडा ( Verandah) जैन मंदिरोंकी अपनी खास चीज थी। जैन मंदिरोंके द्वार चारों दिशाओंको मुख किये हुये बनाये जाते थे । हिन्दुओं के समान जैनी दक्षिणकी ओर मंदिरका द्वार रखना बुरा नहीं मानते थे । पल्लवोंके प्राधान्यकाल में जैनोंके लकड़ी के बने हुये मंदिर पाषाणके बना दिये गये थे ।' किन्तु गंग राजाओंने उपरांत जो मंदिर बनवाये वह द्राविड़ प्रणालीके आधारसे बनयाये । इनमें भी जैन उपरांत बने हुए मन्दिरोंके प्रमावका प्राबल्य था; क्योंकि मन्दिर। गङ्ग राजाओंका राजधर्म जैनमत था। विद्वा. नोका कहना है कि जैनमन्दिर सौन्दर्यके १-गंग०, पृ. २२७-२३४ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy