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________________ गङ्ग राजवंश। [१२९ गंगवाड़ीमें साधारण जनताका आचार-विचार और रहन सहन प्रशंसनीय था। 'कविराजमार्ग' नामक ग्रंथके जनताका आचार देखनेसे एवं महाकवि पम्पने जो यह लिखा विचार। है कि उनकी रचनाओं को सबही प्रकारके मनुष्य पढ़ा करते थे, यह स्पष्ट है कि गंग. वाड़ीके निवासी स्त्री-पुरुष विद्या और ज्ञान के प्रेमी एवं उनका भादर सत्कार करनेवाले थे। जैनाचार्यों ने उन्हें ठीक ही 'भव्य-जन' कहा है। वे वीर- रसपूर्ण काव्योंको कण्ठस्थ करते थे। कथाओं और पुगणोंसे लेकर सुंदर और शिक्षाप्रद अवतरणों का स्वास अवसरोंपर अभिनय किया करते थे। समय समयपर भाषण सुनते और विद्वानोंकी सत्संगतिसे काम उठाते थे । सांस्कृतिक ज्ञान उनका विशाल था । वह देशाटन भी खूब किया करते थे, जिसके कारण मानव जीवन सम्बन्धी उनका अनुभव खूब बड़ा-चढ़ा था । यद्यपि उनका गाई स्थिक जीवन समृद्धिशाली था; परन्तु फिर मी वे परिग्रहका परिमाण करके सीवा-सादा जीवन विताते थे। वे बड़े ही मिष्ट सम्माषी, सत्यानुय यी, संयमी, समुदार और प्रेम एवं लक्ष्मीके पुनारी थे। जैनधर्मकी महिंसामय शिक्षाका उनके हृदयोंपर विशेष प्रभाव पड़ा हुआ था, जिसके कारण पशुओंपर लोग दया करते थे। उन्हें देवताओं के नामपर यज्ञादिमें भी नहीं होमते थे। खान-पान और मौज-शौक के लिये पशुओं को किसी तरहका कष्ट नहीं दिया जाताथा। सबही लोग सादा-सात्विक निरामिष भोजन किया करते थे। कतिपय नीच जातियोंको छोड़कर शेष भोजनमें लड्डू, सीकरण, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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