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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
वणिक मादि श्रेणियों के प्रतिनिधियों के अतिरिक्त प्रधान, सेनबोग और मनिगा भी हुमा करते थे। प्रधान पहनस्वामी' ही हुमा करते थे। परिषद घरोंपर, और तेलियों, कुम्हारों, घोषियों, गजों, दुका. नदारों भादि पर कर लगाता था। भायात और निर्यात कर भी परिषद वसूल करता था। ब्रह्मण इन घरोंसे मुक्त थे । 'नागरिक' मथवा 'तोतीगर' नामक कर्मचारी द्वारा शांति और व्यवस्थाका प्रबन्ध होता था। राजा नगरपरिषदके निर्णयों को बड़े सम्मानकी दृष्टि से देखता था। ग्ङ्गोंकी सैनिक व्यवस्था सामन्तोंकी ऋणी थी। यद्यपि राजाकी
अग्नी सेना हुआ करती थी, परन्तु युद्ध के सैनिक व्यवस्था। समय सामन्तगण और प्रांतीय शासकगण
अपनी-अपनी सेना लेकर गजाकी सहायताके लिये भाते थे। वैसे गजा चाहता था उसने मनुष्यों को सेनामें भरती कर लेता था । स्थायी सेना मुख्यतः तीन भागोंमें विभक्त थी मर्थात् (१) पैदलसेना, (२) घुड़सवार, (३) और हाथियों की सेना। उच्च सैनिक शिक्षाके स्थानपर सैनिकोंमें राजाके प्रति अटूट भक्ति और उत्साहका बाहुल्य था। यद्यपि शिलालेखोंमें चतुङ्गसेनाका उल्लेख है, परन्तु रथसेनाका विशेष उपयोग होता नहीं मिलता। यदि रथ युद्ध के लिये काममें लिया जाता था तो बहुत कम । सेनाके उच्च राजकर्मचारीगण 'दंडनायक'-'महाप्रचंड दण्डनायक'-'महासामन्ताधिपति' और ' सेनाधिपति हिरियहेडुवक '
१-गंग. १५८-१६२. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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