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________________ गङ्ग- राजवंश | [ ९५ जाते थे और वे 'स्थानापति' कहलाते थे । ग्राम-कर्मचारी मुख्यतः मुखिया (गौड़), सेनवोव, मनिगार और ग्रामलेखक होते थे । मुखियाका फाम लगान वसूल करना और डाकुओंसे ग्रामकी रक्षा करना होता था । उसे एक पुलिस मजिस्ट्रेट जैसे अधिकार भी प्राप्त होते थे । उसका पद वंशपरम्परीण होता था, जिसको वह चाहता तो किसीको बेच भी सकता था । उनके पतियोंकी मृत्युके उपरांत विषवाओं को भी वह पद मिलता था । • ग्रामके बाद नगरोंका स्थान था । नगर वहीं बसाये जाते थे कि जिस स्थानपर काफी जंगल और पानी नगरोंका प्रबन्ध । एवं भोजनकी सामग्री प्रचुर मात्रामें उपलब्ब होती थी । वे बहुधा पहाड़ोंके निकट ही हुआ करते थे, जिनके चारों ओर खाई और चहारदिवारी बनी होती थी । नगर सभा वहांका प्रबन्ध करती थी । सड़कों, कुओं और तालाबों का बनवाना, जनोपकारक बगीचों और पलों के बागोंका लगवाना तथा धर्मशाला, मन्दिर और कमलसरोवरोंको सिरजना नगरके आधीन था । नगरोंमें जन संख्या के अनुसार दोसे साततक ' फुरस '-' मठ '' अग्नद्दार' और 'घटिका' होत थे, जिनके कारण विद्यार्थी दूरदूरसे ज्ञानोपार्जन करने के लिये नगरोंने आकर रहते थे । नगर में आजीविकाकी अपेक्षा भठारह प्रकारकी जातियों अथवा श्रेणियोंके लोग रहा करते थे और उन्हीं के प्रतिनिधि नगरसभा अथवा परिषद में जाकर नगरका प्रबन्ध किया करते थे । परिषद में 1 १- गंग० १५०-१५२. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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