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________________ भगवान् अरिष्टनेमि, कृष्ण और पाण्डव । [ ७१ निवासी थे; यही कारण है कि उनके निवासकी मूल भूमि काठि यावाड़ 'सुवर्णा' अथवा ' सु-राष्ट्र' नाम से विख्यात् थी । 'महाभारत' में 'सिन्धु - सुवर्णा- प्रदेश' और जातिका उल्लेख है । 'सुवर्णा' का अर्थ 'सु' जाति होता है । जैन शास्त्रोंमें सिन्धु - सौवीर' देशका उल्लेख हुआ मिलता है ।" सौवीर देश अपनी प्रमुख नगर सौवीरपुर के कारण ही प्रख्यातिमें आया प्रतीत होता है जिसे यादवराजा सुवीरने स्थापित किया था। सुबीरका अर्थ 'सु'जातिका वीर होता है । इनके पहले और उपरान्त काटिया का उल्लेख 'सु-राष्ट्र' नामसे जैन शास्त्रोंमें भी हुआ है । इन सु-कीर लोगों की सभ्यताका सादृश्य सिंधु उपत्ययकाकी सभ्यतासं था । ४ भारतीय विद्वानोंका मत है कि सु-जातीय ( Sumerian ) सभ्यताका विकास सिंधु सभ्यतासे हुआ था । सु-जातिके लोग सुराष्ट्रसे ही जाकर मेसोपोटेमिया में बसे थे।" जैन शास्त्रोंमें हमें एक प्रसंग मिलता है जिसमें कहा गया है कि कच्छ - महाकच्छके १- " विशाल भारत” भा० १८ अंक ५ पृष्ठ ६२६ में प्रकाशित " सुमेर सभ्यताकी जन्मभूमि भारत" शीर्षक लेख देखना चाहिये । २- भगवती सूत्र पृ० १८६३ ( सिंधुसोवीरेसु जणवरसु ) व हरि० ३-३-७; ११-६८ इत्यादि । ३–Lord Aristanemi, p. 37. ४- हरि० ११-६४-७६ व ४९ - १४; आक० १-१००; नाच० १ - १९-७; कच० ३-५-६ । ५ - " विशालभारत” भा० १८ अंक ५। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035245
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1937
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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