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________________ ६६ ] संक्षिप्त जैन इतिहास ! दनेज़र आया है । वह यदुराज (कृष्ण) के स्थान ( द्वारिका ) आया देव नेमि कि जो स्वर्ग है | उसने मंदिर बनवाया. सूर्य.. समान रेवतपर्वत के देव हैं ( उनको ) हमेशा के लिये अर्पण किया ।" जैन " भाग ३५ अंक १ पृष्ठ २ । इसमें गिरनार (रेवत) पर्वत देवरूपमें नेमि' का उल्लेख हुमा है और यह प्रगट ही है कि 'जैन तीर्थंकर नेमिनाथ गिरनार ( रक्त ) पर्वत से निर्वाण सिवारे थे। वह रेवत पर्वतक देव हैं । साथ डी अन्यत्र यह अनुमान किया गया है कि गुजरात जैनी वणिक 'सु' जातिके हैं।' अतः इस तत्र धर्म प्राचीनता सिद्ध होती है । परन्तु इसमें खास बात हमारे विषयकी यह है कि नेवुश दनेज़ को रेवा नगरका स्वामी कहा है । इससे प्रतीत होता है कि उसका राज्य भारत में भी था, क्योंकि रेवा नगर दक्षिण भारत में अवस्थित होसकता है । प्राचीन प्राकृत ' निर्माणकांड' में भारतकी दक्षिण दिशा में स्थित रेवनदी सिद्धवरकूटका उल्लेख है । होसता है कि उक्त रेव नगर बहीं रेवनदी निकट हो। इन ददा में यह ताम्रपत्र दक्षिण पथमे जैनधर्म के अस्तित्वको अति प्रचीनकालमें प्रगट करता है । . · उपर्युल्लिखित वार्ताको ध्यान में रखते हुये यह मानना अनुचित नहीं है कि दक्षिण भारतमें जैन ऐतिहासिक काल | धर्मका इतिहास एक अत्यंत प्राचीनकालसे प्रारम्भ होता है । उसके पौरा किालका वर्णन पूर्व पृष्ठोंमें लिखा जाचुका है। अब ऐतिहासिक ४ - विभा० भा० १८ अंक ५ पृष्ठ ६३१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035245
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1937
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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