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________________ श्री रामबाण और रावण । [४१ वियोगमें तड़फती वहांकी राजकुमारी वनमाला उन्हें पाकर मति प्रसन हुई। लक्ष्मणके समागमसे उसके प्राण बचे। यहांसे रघुकुल का अपमान करनेवाले नन्धावर्तके राजाको दण्ड देनेके लिये राम और लक्ष्मण गए । वह राजा उनसे परास्त होकर मुनि होगया। रामलक्ष्मण वंशधर पर्वतके निकट वंशस्थळ नगरमें पहुंचे। उस पर्वतपर रातको भयानक शब्द होते थे, जिसके कारण नगरनिवासी भयभीत थे। साहसी भाइयोंने उस पर्वतपर रात विताना निश्चित किया । वे परोपकारकी मूर्ति थे-लोकका कल्याण करना उन्हें अभीष्ट था । रातको वे पर्वतपर रहे-वहां साधु युगलकी वंदना की। उन साधुओंपर एक दैत्य उपसर्ग करता था, इसी कारण भयानक शब्द होता था । राम और लक्ष्मणने उस दैत्यका उपसर्ग नष्ट किया । उन दोनों मुनिरानोंको उपसर्ग दूर होते ही केवलज्ञान उत्पन्न हुभा। उनका नाम कुलभूषण भौर देशभूषण था। बहाइप्रांतीय कुंथलगिरि पर भाज भी इन मुनिराजोंका स्मारक विद्यमान है । रामचंद्रजीने भी उनके स्मारक स्वरूप वहांपर कई जिनमंदिर बनवाये थे। ___वहांसे आगे चलकर रामचन्द्रजी दण्डकारण्यमें पहुंचे। उस समय तक वह मनुष्यगम्य नहीं था; परन्तु रामचन्द्रजीके साहसके सामने कुछ भी भगम्य न था। वह उसमें प्रवेश करके एक कुटिया बनाकर रहने लगे। वहीं उन्होंने दो चारण मुनियोंको माहारदान दिया, जिसकी अनुमोदना एक गिद्ध पक्षीने भी की। राम लक्ष्मणके साथ रहकर वह श्रावकाचार पालने लगा। रामने इसका नाम जटायु रक्खा । दण्डकवनमें आगे घुसकर राम और लक्ष्मणने कौंचवा नदी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035245
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1937
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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