________________
४०]
संक्षिप्त जैन इतिहास |
'खुशी से जो चाहो मांगलो ।' कैकयी प्रसन्न हुई । उसने कहा कि ' भरतको राज्य दीजिये और रामचन्द्रको वनवास ।' दशरथ यह सुनकर दंग रह गये। रानीका इठ था और वह स्वयं वचनबद्ध थे । जो कैकयीने माँगा वह उन्हें देना पड़ा । परन्तु इस घटनाने उन्हें ऐसा मर्माहत किया कि वह अधिक समय जीवित न रहे । तत्काल ही घर छोड़कर मुनि होगये । भरत राजा हुये, रामचन्द्र वनवासी बने ।
बनवास में रामचन्द्रजी के साथ उनकी पत्नी सीता और उनके छोटे भाई लक्ष्मण भी थे। वे दोनों रामचन्द्रनीके दुख-सुखमें बराबर साथी रहे । भरतको भी रामचन्द्रसे अत्यधिक प्रेम था। वह भ्रातृप्रेम से प्रेरित होकर उन्हें वापिस लौटा लाने के लिये वनमें गये, परन्तु रामचन्द्रने उनकी बात नहीं मानी। बल्कि बनमें ही अपने हाथसे उनका राज्याभिषेक कर दिया । भरत अयोध्या लौट आये । राम, लक्ष्मण और सीता आगे बढ़े। मालवदेश के राजाकी उन्होंने सहायता की और उसका राज्य उसे दिलवा दिया। आगे चलकर बाल्यखिल्ल नरेशको उन्होंने विध्यारवीके म्लेच्छोंसे छुड़ाया। वह अपने नलकूवर नगरमें जाकर राज्य करने लगा। म्लेच्छ सरदार रौद्रभूत उसका मंत्री और सहायक हुआ । इस प्रकार एक राज्यका उद्धार करके राम-लक्ष्मण आगे चले और ताप्ती नदीके पास पहुंचे । वहाँ एक यक्ष नारायण - बलभद्र के सम्मान में एक सुन्दर नगर रचा, जिसका नाम रामपुर रक्खा | वहाँसे चले तो वे विजयपुर पहुंचे | लक्ष्मणके
वनवासमें दक्षिण भारतका प्रवास ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com