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________________ ३४ संक्षिप्त जैन इतिहास। पोदनपुरके एक अन्य राजा सुप्रतिष्ठ थे । यह राजा सुस्थित और रानी सुलक्षणाके सुपुत्र थे । कारण पाकर यह विरक्त होकर सुधर्माचार्यकै चरण-कमलोंमें मुनि होगये । हरिवंशके महापुरुष अंधकवृष्णि आदिने इन सुप्रतिष्ठ मुनिराजसे धर्मोपदेश सुनकर मुनिव्रत धारण किये थे। मुनिराज सुप्रतिष्ठका शौरसेन देशमें कईबार विहार हुमा था । आखिर वहींके गंधमादन पर्वतपर उन्हें कैवल्य प्राप्त हुभा था और वे मोक्षपदके अधिकारी हुये थे। ___ पांडवोके समयमें पोदनपुरका राजा चन्द्रवर्मा था। वह राजा चंद्रदत्त और रानी देविलाका पुत्र था । राजा द्रुपदके एक मंत्रीने उसके साथ द्रौपदीका व्याह करनेकी बात कही थी। 'भविष्यदत्त कथा' में पोदनपुरके एक राजाका युद्ध हस्तिनापुरके राजा भूपालके साथ हुआ वर्णित है। इस युद्ध में पोदनपुर नरेशको पराजित होना पड़ा था। चक्रवर्ती हरिषेण । तीर्थङ्कर मुनिसुव्रतनाथजीके समयमें चक्रवर्ती हरिषेण हुये थे। उनका जन्म भोगपुरके महाराज इक्ष्वाकुवंशी राजा पद्मकी रानी ऐरादेवीकी कोखसे हुआ था । भोगपुर संभवतः दक्षिण भारतका १-उपु. ७०-१३७....! २-उपु. ७२-२०१...! ३-भविष्य संवि १३॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035245
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1937
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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