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________________ ३०] संक्षिप्त जैन इतिहास । नरेशकी राजधानी पोदनपुर दक्षिणापथमें ही प्रमाणित होती है।' बाहुबलि दक्षिण भारतके पहले सम्राट थे और पहले साधु थे। दक्षिण भारतमें आज भी उनकी बृहत्काय पाषाणमूर्तियां इस • स्मारकको जीवित बनाये हुए हैं। “अन्य तीथकर और नारायण तृपृष्ट।" भगवान् ऋषभदेवके अतिरिक्त पौराणिक कालमें भगवान अजितनाथसे भगवान् मरिष्टनेमि पर्यन्त २१ तीर्थङ्कर और हुये थे। इन तीर्थक्करोंने भी केवलज्ञान प्राप्त करके उत्तर और दक्षिणभारतमें "विहार किया और धर्मोपदेश दिया था। 'उत्तरपुराण' में लिखा है। 'कि मलयदेशके भद्रपुरमें तीर्थक्कर शीतलनाथका जन्म हुआ था। और वहींपर मुंडशालयन नामक एक ब्राह्मण रहता था; जिसने लोम कषायके वश हो करके ऐसे शास्त्रोंकी रचना की कि जिनमें ब्राह्म• णोंको सोने चांदीका दान देनेका वर्णन था। उन शास्त्रोंको राजदरबार में उपस्थित करके उसने दान दक्षिणामें बहुतसा धन प्राप्त किया था। यहींसे मिथ्या मतका प्रचार हुआ कहा गया है। मलयदेश द्राविड़ क्षेत्रमें माना जाता है । इसलिये भद्रपुर भी वहीं अवस्थित प्रगट होता है; किन्तु भाधुनिक मान्यतानुसार शीतलनाथ भगवानका जन्मस्थान वर्तमान भेलसा है, जो मध्यप्रदेशमें भवस्थित है। इस मान्यताका क्या माधार है, यह ज्ञात नहीं है । १-विशेषके लिये 'बूलनर कमोमेरेशन वाल्यूम' (लाहोर ) में "हमारा 'पोदनपुर और तक्षशिला' शीर्षक लेख देखो। २-उपु० ५६।२३-८५ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035245
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1937
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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