________________
९८ ]
संक्षिप्त जैन इतिहास |
करनेके लिये राजगृह चला आया था। दक्षिण भारतके देशोंमें उसने खासा भ्रमण किया था ।
समुद्रके निकट स्थित मलयाचल पर्वतपर वह पहुंचा था । वहां से वह सिंहलद्वीप भी गया था; जहांसे वापिस होकर वह केरल आया था । द्रविड देशको उसने जैन मंदिरों और वैनियोंसे परिपूर्ण देखा था । फिर वह कर्णाटक काम्बोज, कांचीपुर, सावत, महाराष्ट्रादिमें होता हुआ विंध्याचल के उस पार आमीर देश, कोङ्कण, किष्किन्धादिमें पहुंचा था। इस वर्णन से भी उस समय दक्षिण भारत में जैन धर्मका अस्तित्व प्रमाणित होता है।
जम्बूकुमार और विद्युत ने अपने साथियों सहित भगवान् सौधर्माचार्य से मुनि दीक्षा ग्रहण की थी। विपुकाचल पर्वत परसे जब सुधर्मस्वामी मुक्त हुये तब जम्बूस्वामी केवलज्ञानी हुये ।
।
१- " दक्षिणस्यां दिशि प्राप्य समुद्रं मळयाचरम् । पटेरादिद्रुमाकीर्णमप्रोतुगमनम् ॥ २१५ ॥ अगम्यं हि सिंहद्वीपं केलं देशमुन्न म् । द्रविडं चैतः गृहागमं जैनटोकपरिवृ-म् ॥ २१६ ॥ वीणं कर्णाटसंज्ञ च कांबोज कौतुकावहम् ।
कांचीपुरं सुकांत्या व कांचनामे मनोहम् ॥ २१७ ॥ कतलं च समासाद्य सहां पर्वतमुन्नम्
*
महाराष्ट्र च वैदर्भदेशं नानावना ङ्कम् ॥ २९८ ॥ विचित्र नर्मदातरं प्रदेश विध्यपर्वम् |
विध्याटव समुल्लंघ्य तचलितम् ॥ २१९ ॥ इत्यादि ।
- जम्बू० पृ० १८८.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com