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________________ सम्राट श्रेणिक, जम्बकुमार ओर विधुचोर। [९५ राजाभोंने दक्षिण भारतपर आक्रमण किये थे। इस अवस्थामें यह संभव है कि श्रेणिकने राजा मृगांककी सहायता की हो। केरल विनय करके श्रेणिक और जम्बुकुमार लौटकर सानन्द राजगृह माये और खूब विजयोत्सव मनाया। ____एक रोज जम्बुकुमारका समागम मुनिराज श्री सुधर्माचार्यसे हुआ, जिनसे उन्होंने अपने पूर्वभत्र सुने। उन्होंने जाना कि सुधर्माचार्य उनके पूर्वभवके भाई हैं। वह भी माईकी तरह मुनि होजानेके लिये उद्यमी होगये; परन्तु सुधर्माचार्यने उन्हें उस समय दीक्षित नहीं किया । जम्बुकुमार माता-पिता की मात्रा लेनेके लिये घर चले गये । वहां उ पितृगणके विशेष आग्रहसे विवाह करना पड़ा; परन्तु उन्होंने नववधुओंके साथ रहकर रतिकेली में समय नहीं . गंवाया । उन सबको समझा-बुझाकर वे दिगम्बर मुनि होगये । जिस समय जम्बुकुमार अपनी पत्नियोंको समझा रहे थे उस ससय विद्युञ्च! नामका चोर उनकी विद्युचर। बातें सुन रहा था, जिनका उसपर वेढव असर पड़ा। और वह भी अपने पांचसौ शिष्यों सहित जम्बृकुमार के साथ मुनि होगया। यह विद्युच्चर दक्षिण. पथके प्रसिद्ध नगर पोदनपुर के नरेश विद्यु दाजका पुत्र विद्युःप्रभ था। इसने चौर्य शास्त्रका अध्ययन किया था और उसका अभ्यास १-उयु० पृ० ७०९ "जम्बूकुमार चरित्” में इन्हें हस्पिनापुरके राजाका पुत्र लिखा है; परन्तु वह विद्युबा इनसे भिन्न और भ. पाश्वनाथके तीर्थ में हुये थे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035245
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1937
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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